Dreams

Thursday, May 22, 2014

रसधारा © Copyright



काव्य रस का सरोवर सूख रहा भीतर
नई , ईश , रसधारा प्रदान करो
मृत में प्राण, मूक मे वाणी , भर पाऊं शब्दो से अपनें
एसी अमृतधारा वरदान करो

नेत्रहीन के नैन बने, चिंतित माँ के चैन बने
शब्दों के गुच्छे मेरे, चमकीले तारों की रैन बनें
राष्ट्र को झकझोड़ सकें, घाराओं को मोड़ सकें
मेरे शब्दों में कुछ एेसे प्रभु तुम प्राण भरो

भूमंडल में स्पनदन हो, आत्माओं का मंथन हो
मेरी कविता के ऊच्चारण से सूर्योदय का आभिनंदन हो
कुरूप भी पढे़ तो लगे उने कि काया उसकी कंचन हो
हाथों मे मेरे ऐसे प्रभु  तुम स्वर्ण उगलती खान धरो

काव्य रस का सरोवर सूख रहा भीतर
नई , ईश , रसधारा प्रदान करो
मृत में प्राण , मूक मे वाणी , भर पाऊं शब्दो से अपनें
एसी अमृतधारा वरदान करो

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

rasprabha@gmail.com
aapse baat karni hai

मुकेश कुमार सिन्हा said...

बेहतरीन ....... सुंदरतम !!