Dreams

Wednesday, April 29, 2015

कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे .... (c) Copyright


कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे
कुछ सीधे हाथ का लेखन
कुछ खबबे
कुछ खट्टे अचारी रस
कुछ मीठे मुरब्बे
कुछ कोलाहल के गूंजते मृदंग
कुछ छटपटाहट मे भीगती तरंग
कुछ मासूमियत के खिलते रंग
कुछ प्रेम की नशीली भंग
कुछ हार के आँसू
कुछ जीत के शाही ढंग
कुछ पीरों की वाणी
कुछ अधीरों का रोना
कभी कड़वाहट के रुदन
को शहद में भिगोना
कुछ माटी की खुश्बू
मे कूची डुबोना
कुछ शंखों की गूँज
से सन्नाटे को धोना
बचपन की यादें
कुछ जवानी के वादे
कुछ कर गुज़रने के
पहाड़ों से इरादे
कुछ पहाड़ों की चट्टानों
से रिस्ती धारा
कभी कल्कल अमृत सा गंगा का पानी
कभी अथाह महासागरों सा खारा
कभी गुस्से की चीखें
कभी माफी की भीखें
कभी ये साँसें भी
सुन्न होना सीखें

और ये सब
कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे
या एक दिन मिट जाएँगे सब
या फिर इनसे झुक जाएगा रब

ये कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे

Tuesday, April 21, 2015

स्थिर और स्थाई (c) Copyright



स्थिर और स्थाई में अंतर है
एक बहना नहीं जानता
एक बहा पहले निरंतर है
स्थिर और स्थाई में अंतर है

स्थिर, थिरका करता था कभी
अब पद्मासन में विलीन है
अनुभव की धारा में
बह बह के थिरकन थमी है
जिसमे आत्म्बोध की
सुनहरी परत जमी है
जिसने सूर्य की सलामी ली है
मदिरा सी जवानी जी है
जिसने भाग्य को ललकारा है
भय को जिसने डकारा है
जो आदि से है, अनंत तक
और चेतना से, अमर है
वो स्थिर है

स्थाई लंबायमन है
ना गौरव है ना शान है
जिसमे भय को ललकारने की
गर्मी नहीं है
और इस बात से पानी हो जाने की
बेशर्मी नहीं है
जो जीना नहीं जानता
जो अमरता नहीं मानता
जो मर कर भी
उस पार नहीं फांदता
जो ना बांझ है
ना उपजाऊ है
ना भाला है किसी के हाथ का
किसी के पैर का ना है खड़ाऊ
जिसने विजय का प्याला नही चखा
ना ही मूह की कभी खाई है
वो स्थाई है
 
स्थिर और स्थाई में अंतर है
एक बहना नहीं जानता
एक बहा पहले निरंतर है
स्थिर और स्थाई में अंतर है


Tuesday, April 14, 2015

बना लो (c) Copyright




प्रेम के मुरझाए पुष्प
सुगंध वही देते हैं
बस अश्कों मे डुबो लो
और इत्र बना लो
पुरानी कूची से
नये चित्र बना लो
यदि इतने कलात्मक नहीं हो
तो मय से यारी कर लो
और पीड़ा को मित्र बना लो
यदि मय की धारा में
ना बहना हो
तो हृदय को
कठोर करो और
पत्थर सा
चरित्र बना लो


Monday, April 13, 2015

हो जाए तो? (c) Copyright



यदि ईर्ष्यालु की धार बंद हो जाए तो?
यदि कामुक का ‘व्यापार’ बंद हो जाए तो?
यदि लोभी का उधार बंद हो जाए तो?
यदि मोहि का प्यार बंद हो जाए तो?

गोते खाती नय्या पार हो जाए
ये नर्क पुनः संसार हो जाए


Thursday, April 9, 2015

इशारे © Copyright




इतनी किताबें, इतने ग्रंथ,
पोथे इतने सारे हैं
कुछ कल्पनाओं की पतंगें हैं
कुछ इच्छाओं के गुब्बारे हैं
कुछ द्रवल मन की धाराएँ
कुछ स्थिर तालाबों के किनारे हैं
इन सब को पढ़ने से
क्या ज्ञान चक्षु खुल जाएँगे?
क्या ग्रंथों के उच्चारण से
पाप सारे धुल जाएँगे?
अचेत को मिलेगी क्या चेतना?
अस्थिर को क्या मिलेगी संवेदना?
क्या पढ़के इन सब को
आ जाएगा अभेद को भेदना?
जो सब पढ़ता है
क्या वो विद्वान है?
जो पढ़ के उगलता है
क्या वो महान है?

जैसे चंद्रमा
सूर्य की रौशनी को
प्रतिबिंबित करता है
उसकी उपस्थिति को
अंकित करता है
सूर्या है तो
चन्द्र का प्रकाश है
पर चंद्रमा की
सुंदरता ही प्रख्यात है
वैसे यह पोथे, ये किताबें
ये ग्रंथ जो इतने सारे हैं
ज्ञान नहीं हैं
केवल ज्ञान की ओर
बस इशारे हैं
बस इशारे हैं
बस इशारे हैं


Tuesday, April 7, 2015

म्यान है तो अभियान है ! (c) Copyright



तलवारें तो युगों युगों से ऐसी ही प्यासी हैं
बिना ध्येय के गुर्राहट भी बस एक उबासी हैं

पर ज्ञान  है, तो म्यान है
म्यान है तो अभियान है
अभियान है तो जग अपना है
करुणा पर ही ध्यान है

तलवारों को म्यान दिखाओ
दिशाहीन को अभियान दिखाओ
शांति पाठ का ज्ञान  दिखाओ
चक्रवर्ती को दान दिखाओ

नहीं तो तलवारें तो अपनी प्यास बुझाएँगी
कई युगों तक  संतानों को ऐसे ही खाएँगी
करुणा है तो विजय है, विजय है तो मान है
म्यान है तो अभियान है
म्यान है तो अभियान है