Dreams

Thursday, April 19, 2012

अनुराग कश्यप तक कैसे पहुंचाऊं ? Copyright©




अनु बाबु, हम भी लिखते हैं
हमारे भी सपने कौड़ियों के दाम बिकते हैं
सपने साकार करने का यह जो भ्रम है
सत्य यह ही है
अक्षर ही ब्रह्म है







सोचा आप को लिख के देखता हूँ
कविता के माध्यम से ही सही
थोड़े विचार फेंकता हूँ
मेरे शब्दों पे आपकी नज़र दौड़े
उस गर्मी से अपने सपनो के चने सेकता हूँ

मांगने से ब्रह्म मिलता है
मैं तो केवल ध्यान मांग रहा
आपकी नज़र पड़ने का
वरदान मांग रहा
आखर आखर मेरा बोले
सुन लो मेरी भी गाथा
इतने शब्द ईश पे लिखता
तो वरदान ही दे देता विधाता.

कश्यप गोत्र तो मेरा भी है
ब्रह्म के ब्रह्माण्ड का मैं भी ब्राह्मण
पर आखर मेरे सत्य ही बोलें
चाहे हो जो, श्रेणी, जो मेरा गण

कीचड में मैं बसा नहीं हूँ
पर हूँ कमल मैं भी स्वयं
अहम् ब्रह्मास्मि का नारा लगाता
पर करता आपको नमन

दो मुझे भी एक अवसर
प्रयास करने को हूँ अग्रसर
एक इशारा कर देना बस
मोती होंगे मेरे अक्षर
शब्द वीणा बन जायेंगे
और विचार होंगे मेरे अमर.

Tuesday, April 17, 2012

मौका परस्त! Copyright©


हर मोड़ पे है मौका
हर राह में है मौका
हर जीत , हर हार में है मौका
और मैं मौका परस्त हूँ





हार में है जीत का मौका
जीत में है त्याग का मौका
त्याग में है मोक्ष का मौका
और मैं मौका परस्त हूँ

अतीत में है अनुभव से सीखने का मौका
वर्तमान में है सपने देखने का मौका
भविष्य में सपने साकार करने का मौका
और मैं मौका परस्त हूँ

कौन कहता है मौका परस्ती एक दोष है
जिन्हें मौके मिलते हैं वह उन्हें बहा देते हैं
जीने नहीं मिलते वह भाग्य को ललकार देते हैं
पर मौका परस्ती में जो स्वाद है
वह शतरंज की छाओं में भी नहीं
जीत की मशालों में भी नहीं

मौका न मिले तुझे तो छीन ले मौका
जो तेरे मौके छुपा के रखते हैं
उन्हें तू त्याग दे,
अपने मौकों को खुद आकर दे
मौका परस्त न होगा तो
जीवन बिना ध्वज लहराए मुरझा जाएगा
तेरे नाम का दीप जले बिना ही इतिहास चला जाएगा

Monday, April 2, 2012

क्षमा दान की सुगंध ! Copyright©


भक्ति मार्ग में चलने को हूँ मैं अब अग्रसर
पग बढाने को आतुर हूँ, झुका हुआ है मेरा सर
अंतिम पग क्या होगा, यह तो वह ही जानेगा
प्रथम पग क्या होगा, मेरा ह्रदय कैसे मानेगा






भक्ति मार्ग का पहला पग होगा माया का त्याग
मोह से मुक्ती होगी , इन्द्रियों के जाल से निकाल होगा ,त्रुटियों का परित्याग
दान से आसान त्याग की परिभाषा मुझे नहीं अभी ज्ञात
पहले नेहलाऊंगा मन को भक्ति में, ठंडी करूँगा थोड़ी अन्दर की आग


दान करूँ तो क्या करूँ , पहले किसको दान करूँ
किसकी भक्ति में सर झुकाऊं, किसका पहले ध्यान करूँ
यह प्रश्न था मन में मेरे, और उत्तर मिला नहीं
एक बगीचे में बैठ गया मैं, सोचा प्रकृति से आरम्भ करूँ


क्यारियों में फूल थे और, हरियाली थी चरों ओर
तितलियाँ मदमस्त उडती उडती, शांत करती सारा शोर
मन में मेरे टीस उठी, कि कैसे समझूंगा दान का अर्थ
कैसे अहम् की मृत्यु होगी, कैसे होगी आत्मा की भोर


फिर चला मैं आगे तो बिन चाहे एक फूल को रौंध दिया
शूल उठा मन में मेरे तो उसका हाथों में गोंद लिए
पुछा मैंने उस से, कि कैसे मैं दान करूँ
बोला वह कि बैठ भक्त, तुझमे मैं दान करने का भाव भरूँ


सूंघ अपने जूते की एढी, जिसने मुझको रौंदा था
जहाँ मेरा स्थान था , जहाँ मेरा घरौंदा था
मेरी मसले जानी की सुगंध अभी भी ढी में है तेरी
यह ही क्षमा दान का पहला सबक, यह ही है तेरी सीढ़ी


जिसने तुझको रौंद दिया हो, तेरा जीवन उधेड़ दिया
तू उसे क्षमा अपना प्रदान कर
वह तुझे चाहे मार गिराए
तू उसे गले लगाके, क्षमा दान कर


क्षमा दान ही ब्रह्म दान है
क्षमा से ही खुलते द्वार , जो अब तक थे बंद
उसमे ही सार छुपा है
उसमे ही ईश की सुगंध


सुगन्धित कर जीवन उन सबका जिसने तुझपे घात किया
जिसने तुझे ठेस पहुंचायी, जिसने प्रतिघात किया
ईश क्षमा में बसा हुआ है, उसी की सुगंध है
उसकी भक्ति करनी है तो , मन तेरा क्षमा को प्रतिबद्ध है