Dreams

Tuesday, July 28, 2015

राख बनूँ, धूल नहीं ! (c) Copyright




राख बनूँ,
धूल नहीं
लंगर की डोर बनूँ,
फंदे की झूल नहीं
विपरीत बहुँ,
अनुकूल नहीं
राख बनूँ,
धूल नहीं

तीखा जीवित काँटा बनूँ
शवों पर निर्जीव फूल नहीं
कोरा पन्ना बनूँ
इतिहास की भूल नहीं
इंक़लाब बनूँ
मक़बूल नहीं
राख बनूँ
धूल नहीं

वीरगति का लहु बनूँ
कायरता का त्रिशूल नहीं
चुनाव का इनकार बनूँ
दबाव का क़ुबूल नहीं
चेतना का बीज बनूँ
विवेकहीन मूल नहीं
राख बनूँ मैं
धूल नहीं
राख बनूँ मैं
धूल नहीं

Monday, July 20, 2015

रेत पे अंकित पदचिन्हों की .. ! (c) Copyright

 
 
 
बात नहीं है जूतों की
बात तो है बस कदमों की
रेत पे अंकित पदचिन्हों की
समय के साथ मुक़दमों की
 

कीचड़ में भी
साख जमाएं देखो
कमल कैसे मुस्काये
छीटें उसे भिगाना चाहें
पर वो गीला भी ना हो पाए
पुष्पराज की स्थिरता उसकी शोभा
शबनम की बूँदें केवल अलंकार
ना बदले उसकी काया
ना बदले उसका आकार
बात नहीं है शबनम की
बात तो है बस पदमों की
रेत पे अंकित पदचिन्हों की
समय के साथ मुक़दमों की
 

तूफ़ानों से लड़ती कश्ति
डगमग डगमग थर्राये
माझी संकल्पी हो तो
सागर का सीना भी चिर जाए
सागर अपनी लहरों से
भले उसे डरा जाए
पर जिस नाव का चप्पू
विश्वास भरा हो
लहरे वो हरा जाए
बात नहीं है
तूफ़ानों से मिलते इन सदमों की
केवल रेत पे अंकित पदचिन्हों की
समय के साथ मुक़दमों की

Monday, July 13, 2015

बीज थे ~ © copyright





उन्होने हमे दफ़नाना चाहा
पर हम तो बीज थे
दफ़्न होके भी उग जाते
वो उगते ही काट डालते
हम कटके भी उग जाते
उन सबको हमारी छाया
से डर लगता था शायद
तने तने को हमारे
वो झुकाया करते
हम फिर तन तनाके तन जाते
उनके दिल बार बार काट काट के
भी ना पसीजते
उन्हे कुछ और सोचना था
पर उन्होने हमे दफ़ना दिया
और हम ~ बीज थे
उन्होने हमे दफ़नाना चाहा
पर हम तो बीज थे.

 




Wednesday, July 8, 2015

जाना है अभी ... Copyright



आसमान गिर रहे हैं जो
उनका भार उठाना है अभी
धसती मानवता को तुझे
धरातल तक फिर से लाना है अभी
बवंडर बनते हवाओं के वेग को
वश में कर जाना है अभी
धाराओं को मोड़ना है तुझे
पानी हो अपनी गति से बहाना है अभी
भस्म करते ज्वालामुखी के मूह पर
शीतल गंगाजल गिराना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
 
 
बहुत मुस्कानें बिखेरनी है तुझे
बहुतों को गले लगाना है अभी
शोर है जो इतना उस से ही धुन छेड़नी है तुझे
हर एक स्पंदन को एक सुर में लाना है अभी
बुझना धर्म नही है तेरा
तुझे जग को चमकाना है अभी
इस धरती, इस आकाश इस समंदर को ही नहीं
पूरे ब्रह्मांड में अपना रंग चढ़ाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
 
 
जो रूठ गये हैं तुमसे
तुझे उन्हे मानना है अभी
जो ना उम्मीद से निरुत्तर हैं
उन्हे उम्मीद का उत्तर पहुँचना है अभी
सोए हुए विवेक को सबमें
फिर से जगाना है अभी
इंद्रधनुष के छोर जो बिछड़े हुए हैं
तुझे उन्हे फिर से मिलवाना है अभी
हार गया है कोई जो
उसे फिर से उम्मीद दिखलाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
 
 
पतझड़ के पत्तों में रंग भरके
फिरसे  बसंत बनाना है अभी
घनघोर भयावह रातों को
अपने तेज से चमकाना है अभी
निष्प्रेम हृदय में पीड़ा हटा
प्रेम के पुष्प उगाना है अभी
भाई, पति, बेटे, यार दोस्त का
धर्म तुझे निभाना है अभी
बेरंग महफिलें फीकी पड़ी हैं देख
उसे अपनी कूची से रंगाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी