“काश” की नहीं ज़रूरत तुझे
गर तलाश तेरी जारी है
“शब्बाश” की नहीं ज़रूरत तुझे
गर हर मशक्कत में तेरे
खुद्दारी है
हर जंग जो लड़ेगा तू, छोटी है
हर खून की बूँद में
तेरे गर पसीने की तय्यरी है
हर बरछी हर भाला हल्का है
गर ढाल तेरी भारी है
“काश” की नहीं ज़रूरत तुझे
गर तलाश तेरी जारी है
गिरे तू तो सम्भल जाएगा
हर मुक़ाम पे खुद को
सीना ताने खड़ा पाएगा
हार की मार, वक़्त की धार
से घबराना छोड़ दे
क़ामयाबी ने जो तेरी
नज़र उतार है
“”काश” की नहीं ज़रूरत तुझे
गर तलाश तेरी जारी है
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