Dreams

Tuesday, January 21, 2014

जो ...© Copyright

 

जो कहते हैं कि गरजने वाले बरसते नहीं
शायद उन्होने, हम जैसे मेघ नहीं देखे
जो पूर्वाई के झोंकों में झूला झूलते हैं
शायद उन्होने हम जैसे तूफ़ानों के वेग नहीं देखे

जो लूली टाँगों की घिसट को मदमस्त चाल बतायें
शायद उन्होने गज के शाही टेक नहीं देखे
जो राष्ट्र को राज्यों में बाँटने में लगे हुए हैं
शायद उन्होने चार्करवर्ती सम्राटों के राज्याभिषेक नहीं देखे

जो चमकीली भंगिमाओं में प्रसन्न रहते
शायद उन्होने सौ सूर्यों के तेज नहीं देखे
जो गोरे काले, रंग भेद से रंगते सबको
शायद उन्होने, इंद्रधनुषी दैविक रंग्रेज़ नहीं देखे

जो हरदम हर में , बुरा ही देखें
शायद उन्होने प्रकृति के छोटे छोटे संदेश नहीं देखे
जो हर दम अपनी मनवाने को आतुर हों
शायद उन्होने यमराज के आदेश नहीं देखे

जो कहते हैं कि गरजने वाले बरसते नहीं
शायद उन्होने, हम जैसे मेघ नहीं देखे
जो पूर्वाई के झोंकों में झूला झूलते हैं
शायद उन्होने हम जैसे तूफ़ानों के वेग नहीं देखे

Monday, January 20, 2014

निनाद © Copyright

 


सन्नाटे में भी
हल्का हल्का सा है निनाद
वेदों की वाणी
वीणा की ध्वनि
जीवन के रस का है स्वाद
हल्का हल्का सा है निनाद

मृत्यु के साए से उन्मुक्त
जीव की नाड़ी के स्पंदन
व्योम में फैला
प्राण का धन्यवाद
हल्का हल्का सा है निनाद

अनादि से पहले अंत के बाद
ओमकार का नैसर्गिक आलाप
उन्नत हुआ स्तर, ना पुण्य, ना पाप
पुराने की भस्म, नवीन की खाद
हल्का हल्का है निनाद

काल चक्र और योनि तोड़े
समय के पहिए को मरोड़े
शिव-शक्ति की भंगिमा से ऊपर
नटराज के तांडव से अनछुआ
"आशा" का है उन्माद
करता हल्का हल्का निनाद
हल्का हल्का सा है निनाद
हल्का हल्का सा है निनाद

Wednesday, January 15, 2014

भूमि पूजन © Copyright

 
 
नीव रखने से पूर्व
गृह प्रवेश से पहले
अनिवार्य है भूमि पूजन

तिमिरारी की लौ जैसी
पूजन की थाल सजी हो
नव्य नवेली दुल्हन सी
अंतर्मन की ज्योत धजी हो

जिस भूमि का पूजन हो
वो त्याग धर्म की धारा रहे
उसकी मिट्टी में बलिदान और कर्मठता
का लहू लबालब भरा रहे
मैने भी भूमियों में भूमि
मातृभूमि के पूजन हेतु
पूजा की थाल सजाई थी
हल्दी, रोली, चावल मॉली
भक्ति भर भर धज़ाई थी
क्यूँकि मुझे लगा था
मेरी मातृ भूमि तो वीरों
और वीरांगनाओं के बलिदान
के लहू में गंगा नहाई थी
ज्योत जलाई मैने और
हल्दी रोली में छिड़का गंगाजल
एक हाथ में घंटी थी मेरे
एक हाथ में था श्रिफल
पुष्प भी थे, आम की लकड़ी थी,थे पान के पत्ते भी
हाथ जुड़े थे, पैर मुड़े थे, झुके हुए थे मत्थे भी
शंख बजाया मैने और कपूर को मैने आग दी
तभी धरती बोली
"मत कर पूजा मेरी, ए श्रद्धालु
मेरे बेटों ने ही मेरा आँचल छीना है
बेच दिया है मुझको और
मेरे सीने पे ही गोली दाग दी"

"मा हूँ मैं, जननी हूँ, हैं संतान भारतवर्ष
मुझे छुड़ाने के लिया किया था वीरों ने संघर्ष
पर जिनके हाथों सौंपी है तुमने सत्ताएं
पानी मेरा खरा हो चला, विषैली मंडराती हैं अब हवायें
कुकर्मो के बोझ से मैं धसती जा रही
अमूल्य थी मैं, अब तो मेरी कीमत सस्ती हुए जा रही
ना रोली , ना चंदन, ना श्रिफल से ना है कुछ अब होने वाला
सत्य और कर्मठता का चाहिए मुझे लहू और पसीना खारा
राष्ट्र बेच दिया तुमने चलो मैने मान लिया
पर फिर कैसे तुमने भूमि पूजन का ठान लिया?

झुकी आँखों और हाथ जोड़ के
मैने यह क्षमा दान लिया
"मा मेरी , मैं प्रण लेता हूँ
अब ना ऐसा होने दूँगा
शीश कटा लूँगा पर
तुझे न अब बिकने दूँगा
ना दोषारोपण करूँगा
और नहीं कहूँगा
उसने किया, वो बोला, मेरा थोड़ी यह दाइत्व है
पर मेरी धरती मेरी माँ, तू ही मेरा अस्तित्व है"

हे भारतवर्ष के पुत्रो
स्वयं ही करना, स्वयं ही भरना
नहीं करेगा कोई और दूजन
बलिदान, त्याग और कर्मठता से ही अब
जियो तुम अपना जीवन
तब जाके कहीं थाल उठाओ
तब जाके करना
मातृभूमि पूजन
मातृभूमि पूजन
मातृभूमि पूजन