नीव रखने से पूर्व
गृह प्रवेश से पहले
अनिवार्य है भूमि पूजन
तिमिरारी की लौ जैसी
पूजन की थाल सजी हो
नव्य नवेली दुल्हन सी
अंतर्मन की ज्योत धजी हो
जिस भूमि का पूजन हो
वो त्याग धर्म की धारा रहे
उसकी मिट्टी में बलिदान और कर्मठता
का लहू लबालब भरा रहे
मैने भी भूमियों में भूमि
मातृभूमि के पूजन हेतु
पूजा की थाल सजाई थी
हल्दी, रोली, चावल मॉली
भक्ति भर भर धज़ाई थी
क्यूँकि मुझे लगा था
मेरी मातृ भूमि तो वीरों
और वीरांगनाओं के बलिदान
के लहू में गंगा नहाई थी
ज्योत जलाई मैने और
हल्दी रोली में छिड़का गंगाजल
एक हाथ में घंटी थी मेरे
एक हाथ में था श्रिफल
पुष्प भी थे, आम की लकड़ी थी,थे पान के पत्ते भी
हाथ जुड़े थे, पैर मुड़े थे, झुके हुए थे मत्थे भी
शंख बजाया मैने और कपूर को मैने आग दी
तभी धरती बोली
"मत कर पूजा मेरी, ए श्रद्धालु
मेरे बेटों ने ही मेरा आँचल छीना है
बेच दिया है मुझको और
मेरे सीने पे ही गोली दाग दी"
"मा हूँ मैं, जननी हूँ, हैं संतान भारतवर्ष
मुझे छुड़ाने के लिया किया था वीरों ने संघर्ष
पर जिनके हाथों सौंपी है तुमने सत्ताएं
पानी मेरा खरा हो चला, विषैली मंडराती हैं अब हवायें
कुकर्मो के बोझ से मैं धसती जा रही
अमूल्य थी मैं, अब तो मेरी कीमत सस्ती हुए जा रही
ना रोली , ना चंदन, ना श्रिफल से ना है कुछ अब होने वाला
सत्य और कर्मठता का चाहिए मुझे लहू और पसीना खारा
राष्ट्र बेच दिया तुमने चलो मैने मान लिया
पर फिर कैसे तुमने भूमि पूजन का ठान लिया?
झुकी आँखों और हाथ जोड़ के
मैने यह क्षमा दान लिया
"मा मेरी , मैं प्रण लेता हूँ
अब ना ऐसा होने दूँगा
शीश कटा लूँगा पर
तुझे न अब बिकने दूँगा
ना दोषारोपण करूँगा
और नहीं कहूँगा
उसने किया, वो बोला, मेरा थोड़ी यह दाइत्व है
पर मेरी धरती मेरी माँ, तू ही मेरा अस्तित्व है"
हे भारतवर्ष के पुत्रो
स्वयं ही करना, स्वयं ही भरना
नहीं करेगा कोई और दूजन
बलिदान, त्याग और कर्मठता से ही अब
जियो तुम अपना जीवन
तब जाके कहीं थाल उठाओ
तब जाके करना
मातृभूमि पूजन
मातृभूमि पूजन
मातृभूमि पूजन
गृह प्रवेश से पहले
अनिवार्य है भूमि पूजन
तिमिरारी की लौ जैसी
पूजन की थाल सजी हो
नव्य नवेली दुल्हन सी
अंतर्मन की ज्योत धजी हो
जिस भूमि का पूजन हो
वो त्याग धर्म की धारा रहे
उसकी मिट्टी में बलिदान और कर्मठता
का लहू लबालब भरा रहे
मैने भी भूमियों में भूमि
मातृभूमि के पूजन हेतु
पूजा की थाल सजाई थी
हल्दी, रोली, चावल मॉली
भक्ति भर भर धज़ाई थी
क्यूँकि मुझे लगा था
मेरी मातृ भूमि तो वीरों
और वीरांगनाओं के बलिदान
के लहू में गंगा नहाई थी
ज्योत जलाई मैने और
हल्दी रोली में छिड़का गंगाजल
एक हाथ में घंटी थी मेरे
एक हाथ में था श्रिफल
पुष्प भी थे, आम की लकड़ी थी,थे पान के पत्ते भी
हाथ जुड़े थे, पैर मुड़े थे, झुके हुए थे मत्थे भी
शंख बजाया मैने और कपूर को मैने आग दी
तभी धरती बोली
"मत कर पूजा मेरी, ए श्रद्धालु
मेरे बेटों ने ही मेरा आँचल छीना है
बेच दिया है मुझको और
मेरे सीने पे ही गोली दाग दी"
"मा हूँ मैं, जननी हूँ, हैं संतान भारतवर्ष
मुझे छुड़ाने के लिया किया था वीरों ने संघर्ष
पर जिनके हाथों सौंपी है तुमने सत्ताएं
पानी मेरा खरा हो चला, विषैली मंडराती हैं अब हवायें
कुकर्मो के बोझ से मैं धसती जा रही
अमूल्य थी मैं, अब तो मेरी कीमत सस्ती हुए जा रही
ना रोली , ना चंदन, ना श्रिफल से ना है कुछ अब होने वाला
सत्य और कर्मठता का चाहिए मुझे लहू और पसीना खारा
राष्ट्र बेच दिया तुमने चलो मैने मान लिया
पर फिर कैसे तुमने भूमि पूजन का ठान लिया?
झुकी आँखों और हाथ जोड़ के
मैने यह क्षमा दान लिया
"मा मेरी , मैं प्रण लेता हूँ
अब ना ऐसा होने दूँगा
शीश कटा लूँगा पर
तुझे न अब बिकने दूँगा
ना दोषारोपण करूँगा
और नहीं कहूँगा
उसने किया, वो बोला, मेरा थोड़ी यह दाइत्व है
पर मेरी धरती मेरी माँ, तू ही मेरा अस्तित्व है"
हे भारतवर्ष के पुत्रो
स्वयं ही करना, स्वयं ही भरना
नहीं करेगा कोई और दूजन
बलिदान, त्याग और कर्मठता से ही अब
जियो तुम अपना जीवन
तब जाके कहीं थाल उठाओ
तब जाके करना
मातृभूमि पूजन
मातृभूमि पूजन
मातृभूमि पूजन
No comments:
Post a Comment