Dreams

Monday, December 15, 2014

मशालों में !! © copyright



 
 
ना तीरों में, ना तलवारों में
ना बरछी में , ना भालों में
कुछ अलग ही होता है
इन जलती हुई मशालों में


युद्धों से जीते गये हैं सिंघासन
आकशों,  धरती में और पातालों में
झुकते शीश, कटे देह 
लाल रक्त की धारा बही है, 
कई कई परनालों में
पर हृदय पर तो ध्वज लहराए हैं केवल 
जलती हुई मशालों नें



जहाँ खड़ग की धारों ने
भय से धरती धोई है
बारूदी विस्फोटों नें
निराशा हृदय में बोई है
भूखंडों पर विजय ध्वज
लहराया तो है कई सम्राट विशालों नें
पर आशा के बगीचे तो सीँचे हैं
बस जलती हुई मशालों ने



नरभक्षी गिद्ध छुपे हुए हैं
निर्मल बगुलों की ख़ालों में
निराशा के गड्ढे खुदे हुए हैं
स्वार्थ की कुदालो से
अंधकार की बेला को आओ
मिलकर हम तुम दूर करें
हथियार छोड़ के, अहंकार तोड़ दे
दूर करें इन जलती हुई मशालों से



ना तीरों में, ना तलवारों में
ना बरछी में , ना भालों में
आने वाले कल की आशा छुपी हुई है
इन जलती हुई मशालों में

Friday, December 12, 2014

पिता या पति का नाम (C) Copyright



हमारी बहिन ने जैसे ही
पासपोर्ट का आवेदन पत्र
उठाया
नाम, उम्र भरने के बाद
एक रिक्त स्थान पाया
ऊपर लिखा था
"पिता या पति का नाम"
हमारी बहिन का सर चक्राया
बोली
"यह कैसा सवाल है?
क्यूँ भारत का अब भी
ऐसा ही हाल है
इक्कीसवीं सदी में तो
तेज़ी से बढ़ रहे हैं हम
पर केवल पति और पिता से 
ही मेरी पहचान है?"

हम दूरभाष पे थे
दूसरी ओर
हमे तो उसका वीज़ा
लगवाने की थी बस होड़
हमने तो इस सवाल पे
कभी पहले ध्यान नहीं दिया था
हमने तो चुपचाप
पिताजी का नाम ही अंकित किया था
उसे क्यूँ इस पर आपत्ती है
पिताजी का और मेरा
सब कुछ
तो वैसे भी उसकी ही संपत्ति है
हमने तो कभी सवाल नहीं 
उठाया
कभी आवेदन पत्रों की बनावट
पर बवाल नहीं उठाया
भारत पुरुष प्रधान है
हर किसी पर या तो पिता की
छाप है या फिर
पति का ही नाम है

उसने हमारे
सन्नाटे को पढ़ा
फिर कुछ देर रुक के
अपना प्रश्न गढ़ा
"भाईजी, मैं क्या पिताजी से ही हूँ
माँ का कोई योगदान नहीं?
संस्कृति मे तो लिखा है
माँ से कोई महान नहीं
माँ पूजनीय माँ देवी है
भारत भी "माँ" रूपी ही महा देवी है
फिर क्यूँ केवल पुरुष अधिकार जमाते हैं
आवेदन पत्रों पर भी क्यूँ फिर
वो ही धौंस दिखाते हैं?
आपसे तो नहीं पूछते
पत्नी और माँ का नाम
मेरी पहचान को ही
फिर क्यूँ नोचते हैं?"

हम सन्नाटे में ही
रह गये
आवेदन पत्र की अंतिम तिथि
शीघ्र थी
पर बहिन की शंका
नुकीली थी, तीव्र थी
हमने बुद्धि का प्रयोग किया
"मनुस्मृति", की ओर संकेत दिया
"मनु, पुरुष था,
उसने नियम भी वैसे ही बनाए
पुरुष को परमेश्वर दिखाया
और नारी के हिस्से, बच्चे पैदा करना
और आधीनता ही आए"
हम अपनी बुद्धिमत्ता के
स्व-सिंहासन से उतार दिए गये
हमारे पुरुष प्रधानता के
सारे कपड़े उतार दिए गये
हमे समझ मे आया
कि स्थिति गंभीर है
युवा अधीर है
हमने सांत्वना के पुल बाँधे
संगठन के तीर साधे
और कहा
"बहिन, चिंता ना करें
हम ये मुद्दा अवश्य उठाएँगे
नयी सरकार के सामने 
प्रस्ताव लाएँगे
कुछ न कुछ तो होगा ही
नहीं तो हम पूरी व्यवस्था
पर उंगली उठाएँगे
माँ,बहिन, बहुँ, पत्नी
अपने आप में महान हैं
समानता ही इस राष्ट्र का
प्रथम अभियान है
मिटा देंगे हर स्थान जहाँ
हमसे तुम्हारी तथाकथित पहचान है
तुम बाकी सब अंकित कर दो
खाली छोड़ दो
जहाँ जहाँ पति या पिता का नाम है
जहाँ जहाँ पति या पिता का नाम है ||