नयी फसल जो रोपनी हो तो
पहले भूस पुरानी जलानी पड़ती है
ईर्ष्यालु की जलन भी पथिक
श्रम से अपने कमानी पड़ती है
धाराओं को मोड़ने की
चट्टानी ताक़त के लिए
जवानी अपनी लुटानी पड़ती है
पसीने को सम्मान मिलता ज़रूर
पर परिवर्तन के लिए
रक्त-धार तो बहानी पड़ती है
खड़ग की धार तेज़ हो
समय आने तक म्यान को ही
उसकी चमक बचानी पड़ती है
धैर्य ऐसी कड़वी औषधि है
समय आने तक हर विजयी को
चुप चाप चबानी पड़ती है
~© अनुपम ध्यानी
1 comment:
सुन्दर कविता
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