Dreams

Tuesday, June 28, 2011

SNOOZED !! Copyright ©






early mornings and confusing thoughts
dreams just ending and suddenly comfortable cots
ringing ,in the back ground, the alarm clocks
clamoring in the head, last night's booze
and what do i do....
i hit the snooze





she called me and kept doing that
waking me up when i wanted to sleep
in the comfort zone i like to keep
but the calls kept coming
the sounds kept drumming
and what do i choose
i hit the snooze


every time life came at me when i was asleep
to wake me up from the dream , i wanted to keep
i snoozed it , 'cuz i was a coward
wanted to stay under the blanket's warmth
and never tread the paths which i didn't understand
i was not ready to hold life's hand
was afraid of the poison it had promised
i was not ready for the nectar it had to offer, to ooze
and what do i do
i hit the snooze


a very democratic way to chose what life has to offer
is to snooze
to remain in the cocoon of sweetness
and not risking to see life's muse
and that's why we snooze


today was not just a wake up call by her
it was a call from the wild
life calling at me and waking me up to my feet
the tendency was to hit the button again and snooze
but i knew it was not what HE chose
so i let it ring "woke up" and rose
bewilderment , anxiety and bemuse
but heck yeah...that's the way to live....
that's what you should choose
and not to snooze!
not to snooze!
not to snooze!

Monday, June 27, 2011

जीवन है अभी......!!!! Copyright ©


जब चित्त प्रसन्न हो , मन रंगीला
हाथ हमेशा चमकते रंगों की ओर जाएँ
चित्रफलक पर कूची भी
मदमस्त पवन सी है लहराए
फिर दुखी मन का भाव क्यूँ होने थें प्रकट
एक मिला है जीवन , जी लें उसको
हो जाएँ ईश के निकट



चाहे कितने अच्छे कर्म करो तुम
चाहे कितनी नैतिकता फैलाओ
चाहे जितने पुण्य धर्दो तुम
और चाहे कितने दानी हो जाओ
ईश ने केवल एक जन्म दिया है तुमको
कुछ भी करलो, कैसे भी
इस जीवन के अंतिम क्षण के बाद
एक क्षण भी न दिया जायेगे
जो है जाम तुम्हारे भाग्य में लिखा
वह केवल इस जीवन में पीया जाएगा
तो यदि तुमको डर लगता है अगला जीवन कैसा होगा
और कैसे होंगे तेरे कर्म
कैसी होगी काय तेरी
क्या होगा तेरा धर्म
तो चिंता मत कर और समझले , यह ही जीवन है केवल
न कुछ लेकर आया था और न कुछ लेकर जाना है
जो है सब यहीं है, यहीं पर ही निपटाना है



जी लो जीवन , ऐसे जैसे युगों युगों से प्यासे हो
पी लो प्याले धरे हैं जो, जितने अच्छे खासे हो
एक बूँद न बचे जिसको तुमने न चखा हो
खालो सारे फल, चाहे जिस पेड़ पे रखा हो
यह जीवन वरदान है तुमको , आशीर्वाद है ब्रह्मा का
इसको जीलो तुम न हो जीवन तुम्हारा दास किस क्रम का
खुशियाँ बांटो, हर लोग गम तुम सब का
जैसे तुमने जग जीत लिया हो कब का
एक बार है जीवन मिलता , एक बार लेते अवतार तुम
इस अवतार को व्यर्थ न करना, करदो ऐसा प्रहार तुम



इस पल में जीलो, न टालो कल, परसों या कभी
जीवन यहीं है, आज है...जीवन है अभी
जीवन है अभी
जीवन है अभी!

Sunday, June 26, 2011

आख़री नाव ! Copyright ©


रूह कांप उठी जब आखरी नाव चली गयी
आख़री नाव के साथ सारी उम्मीद भी थी चल बसी
मैं दौड़ा था, घबराया था
छाती फूली थी पर काला बदल मंडराया था
पर वह चली गयी



वह नाव जो लहरों से मुझे न ले जाने का वादा कर चुकी थी
जो मेरी बिलकती काया को देख कर भी न रुकी थी
दूर क्षितिज पे गायब होने से पहले मैं उस से कुछ बोलना चाहता था
पर वह मानो अपने सारे कान बंद कर चुकी थी
मैंने उससे एक सन्देश भेजने का आग्रह किया
और कहा
जब छूएगी तू तट तो कह देना माटी से
मैं भी उसका लेप माथे पे लगाना चाहता था
उसकी सुगंध को अपने रोम रोम में बसाना चाहता था
कह देना मछ्वारों से मैं मत्स्य रूप धर लूँगा
मुझे जाल में फाँस लो
कह देना बरसात से मेरा तन भीगने को उत्सुक था, प्यासा था
कह देना सूरज से कि तू ऐसे नहीं चमकता जहाँ मैं रहता था


नाव तुझसे भी मैं कह दूँ , तूने जो किया वह शायद
तेरे भाग्य में करना लिखा था
पर मेरा भाग्य भी चीख रहा है मुझपे
तुझे एक दिन उसी नाव में जाना था
तो मैं इंतज़ार करूँगा आने की एक बार फिर अपने तट पर
फिर तू मुझको भी ले जाना जहाँ मैं जाने को हूँ इच्छुक
दे जाना मुझको अमृत धरा उम्मीद की, हूँ मैं एक भिक्षुक


आखरी नय्या चली गयी अब दूर क्षितिज के पार
कोई नहीं अब सहारा, को नहीं आधार
सागर इतना अथाह है जो, मुझको निगल जा तू ही
या तो नय्या वापिस कर दे, हो कीमत तेरी जो भी
नाव आख़री हो तो क्या, मैं उम्मीद का दम अब भी भरता हूँ
एक बार फिर से उस उम्मीद की आगे अपना शीश नतमस्तक करता हूँ
यदि नाव न आई मुझे लेने को तो
मैं तैर ही निकलूँगा
और आख़री प्राण की बूँद तक न रुकुंगा
आखरी नाव तब तक न निकले जब तक
सांस बाकी है
आखरी कुछ भी न हो जब तक उम्मीद जागी है
यह इंतज़ार मंजिल नहीं , बस एक पड़ाव है
उम्मीद आखरी न हो नाव के जाने से
क्यूंकि उम्मीद ही आखरी नाव है
उम्मीद ही आख़री नाव है
उम्मीद ही आख़री नाव है!!

Wednesday, June 22, 2011

डर !!! Copyright ©


उधड़े रिश्तों से डर लगता है
टूटे पुलों से डर लगता है
लगता डर है आशाओं से
उम्मीद से केवल जग बनता है







मोरों की पोशाखों में गिद्दों से डर लगता है
धर्म के ठेकेदारों से डर लगता है
डर लगता है मूक दीवारों दे
हिम्मत से केवल जग बनता है


रंगीन शायरों से डर लगता है
नेता की चीखों से डर लगता है
लगता डर है राजनैतिक हथकंड़ो से
गणतंत्र होके ही देश बनता है


सोने से अब तो डर लगता है
बंद आँखों से सपने बुनने से डर लगता है
लगता है डर भावनाओं से मन की
खुली आँखों के सपनों से भवष्य बनता है


दोस्ती से अब तो डर लगता है
प्रेम करने से भी मन डरता है
लगता है डर टूटती रिश्तों की माला से
जग में सद्भावना बस फैलाने का मन करता है


चित्रफलक में रंग भरने से डर लगता है
कूची से रंग मिलाने से डर लगता है
लगता है डर कहीं भयानक दृश्य न दिखा दूँ
आज तो केवल विज्ञापन बिकता है


डर लगना बुरी बात नहीं
न है बुरा होता कोई सपना
उस डर के सहारे न जाने कितनो ने
पूरा किया है अपना सपना
डर लगे अनिश्चितता से तो लगने दे
उस डर के सहारे ही तू ज़िनदा है


मैं डरा था जब, घबराया था
तब ही खाई के ऊपर मैंने पुल बनाया था
जब काला बादल मंडराया था
तब ही मैं सागर से कश्ती निकाल पाया था
तो इस डर के सहारे ही मैंने किये हैं अद्भुत कर्म
यह उमीदें यह सपने यह कर्म यह धर्म
को दिया मैंने रूप
गाढ़ी काया और बनाया यह स्वरुप


तो अब डर न लगने का डर लगता है
तो अब डर न लगने का डर लगता है
तो अब डर न लगने का डर लगता है!!

Tuesday, June 21, 2011

शब्द मेरा ईंधन !!! Copyright ©


यह धरती , यह माटी , ये सुगंधें यह चन्दन
यह करतब, यह खेल, यह ध्वनि , यह स्पंदन
यह रिश्ते ,यह नाते , यह कंगन , यह बंधन
यह शब्दों की बेला ही मेरे जीवन का ईंधन





यह बेलें, यह शाखें यह अथाह नीला गगन
यह रोली, यह कुमकुम, यह मेहँदी यह कंगन
यह ऋतुएँ , यह बारिश , यह धूप , यह फागुन
यह चांदी, यह सोना ,यह हीरे, यह कुंदन
यह शब्दों की बेला मेरे जीवन का ईंधन


वह रातें , वह बातें , वह चुपके से मुलाकातें
वह भूख, वह प्यास, वह बिलकती कराहें
वह नींद , वह उजली सुबह, वह अंगडाई, वह आहें
वह गंगा, वह यमुना, वह सतलज, वह हिंडन
यह शब्दों की बेला मेरे जीवन का ईंधन


यह ईंधन, यह कोयला ,यह आग, यह चाह
यह ज्वाला, यह अग्नि, यह कल कल धारा का प्रवाह
यह स्वर, यह वीणा ,यह साज़ यह अभिनन्दन
यह शब्दों की बेला मेरे जीवन का ईंधन



यह धरती , यह माटी , यह सुगंधें, यह चन्दन
यह करतब, यह खेल, यह ध्वनि , यह स्पंदन
यह रिश्ते ,यह नाते , यह कंगन , यह बंधन
यह शब्दों की बेला ही मेरे जीवन का ईंधन
यह शब्दों की बेला ही मेरे जीवन का ईंधन
यह शब्दों की बेला ही मेरे जीवन का ईंधन

Friday, June 17, 2011

आसमान में छेद, उड़ान आपकी Copyright ©


नीले गगन को देखो ज़रा
अथाह फैली हुई चादर हो जैसे
पंख फैलाओ और नज़र हमेशा हो ऊंची
मदमस्त पतंग उडती है जैसे
जब भी उड़ान भरी , और पेंग बढ़ा दी ऊपर
उम्मीदें मुरझायीं एक न एक बार सबकी
आसमा में छेद था
पर उड़ान थी अपनी


वोह छेद , उस उम्मीद की ज्वाला को अन्धकार में बदल देता
किसी के लिए वोह न उड़ने का होता कारण
जो उड़ता उस छेड़ से बचने की उड़ान भरता
गरुड़ न होके , काक रूप करता धारण
डर, पनपाता वोह छेद
निराशा दर्शाता वोह छेद
उम्मीद भरी उड़ान काम्प्ती
पर फिर....कैसे उड़ो
यह फैसला आपका
उड़ान आपकी



जो डरते ...वोह उड़ नहीं पाएं हैं
स्वतंत्र सपनो को गढ़ नहीं पाएं हैं
हरदम उस छेद से डरे हैं जो
वोह परचम लहरा नहीं पाएं हैं
उड़ान हो तो स्वतंत्र हो
बेख़ौफ़...मदमस्त...उड़ना मूल मंत्र हो
कई छेद हैं जीवन के आसमान में
जो डर गए...उड़ोगे कैसे
हाथ मिटटी से सनोगे नहीं तो..मूरत गढ़ोगे कैसे
पर सबके पास हैं
उड़ान की क्षमता भी
छेद बहुत हैं...
पर कैसे जीना है....यह फैसला आपका
उड़ान आपकी
छेद बहुत हैं..उड़ान आपकी
छेड़ बहुत हैं...उड़ान आपकी

Wednesday, June 15, 2011

अंग्रेजी शराब !! Copyright ©

अपनी मन मर्जी का मालिक मैं तो
अपने दिल का था ठेकेदार
मसले फूलों की महक में झूमु
था मैं तो अपनी सरकार
जब बदली काया, बदले मौसम
जब हुआ सब खराब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी ....अंग्रेजी शराब






जब बदला चित्त मेरा तो
जब भी मन घबराया था
जब भी दायित्व लेने की बारी थी
तब तब मैं शरमाया था
सब गंगा में धो दें पाप
सब चढाएं बहता आब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी... अंग्रेजी शराब



मदिरालय, प्याले और मधुशाला
बगल में था साकी संभाले
जब बिगड़ा मौसम ,मैंने
दूसरों पे जी भर के दोष डाले
जब कीचड से सनी थी काया
मटमैला रंग हो चले थे कपडे
मैंने डाला त्रुटियों पे , सुनेहरा नकाब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी ....अंग्रेजी शराब



जब मौके खोये मैंने तो कहा
कि आरक्षण रखवादो
जब क्षमता नहीं थी कुछ पाने की
कहा कि प्रसाद चढ़वादों
आत्मविश्वास डगमगाया जब और
हिम्मत नहीं थी कि पूरे कर सकूँ ख्वाब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी ....अंग्रेजी शराब



जब जब हम में कुछ काला है
और हम पहचान जाते
तब तब हम सबसे पहले
उसको सबसे हैं छुपाते
सब से छुप गया फिर भी
रोज़ तो शीशा देखोगे?
अपने मटमैले शरीर को नकारो
पर अपनी काली आत्मा तो सेकोगे?
तो मेरी अंग्रेजी शराब जैसे
न तुम किसी पर करना समय खराब
नहीं तो बोतल में बंद रह जायेंगे ख्वाब
और तुम बन जाओगे किसी और की वो
अंग्रेजी शराब
अंग्रेजी शराब
अंग्रेजी शराब!

Tuesday, June 14, 2011

फरमाइश Copyright ©


कभी ज्वाला बनने के फरमाइश
कभी शिवाला बनने की फरमाइश
कभी भूखों का
निवाला बनने की फरमाइश
और ऐसे रह जाती है मेरी
मोहोब्बत करने की ख्वाहिश



मोहोब्बत की थी मैंने कभी
जब उन्होंने की थी प्यार करने के फरमाइश
उनके सिले होंटों को पढने की की थी कोशिश
जब उनकी ऑंखें पढने की न थी गुंजाइश
वह अपनी अदा से बाज़ न आयीं और चल दी
और मैं बन गया उन गुज़रे लम्हों की नुमाइश


आसन है ज्वाला बनने की फरमाइश
आसन है शिवाला बनने के फरमाइश
मोहोब्बत की ज्वाला से जो बनाया था मैंने शिवाला
उस राख में अभी तक जल रहा हूँ मैं
जलते सपने हैं और बुझी बुझी सी है ख्वाहिश


फरमाइश करों दोस्तों , इस लूटे फ़कीर से
कर देगा बयान जो तुम चाहोगे , एक लकीर से
पर मोहोब्बत की नज़्म न छेड़ने को कहना कभी
उन तारों को धूल लग चुकी है,
कोई मीठा साज़ छिड़ने की न है गुंजाइश


लिखी जायेगी तुमारी फरमाइश
दिल में रह जायेगी मेरी ख्वाहिश

Monday, June 13, 2011

भक्त हूँ....बेवक़ूफ़ नहीं!!!! Copyright ©


गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु
होते होंगे एक समय पे जब
मानवता जीवित थी
जब पापाचार की गठरी केवल
दैत्यों तक सीमित थी
अब पाप बहे हैं गंगा-गंगा
और गुरु हो गया है नंगा
हर ओर द्रोण हैं पनप रहे
एकलव्यों के अंगूठे बिखर रहे
कैसे करूँ गुरु तुमको प्रणाम
जब सिखलाओ तुम मुझको जो नहीं सही
और आज बता दूँ तुमको मैं कि
भक्त हूँ....मैं बेवक़ूफ़ नहीं



ईश ने भेजा दो लोगों को अपने रूप में धरती पे
रखा खुद को माँ और गुरु को अपनी ही वर्दी में
माँ तो देवी रह गयी पर गुरुओं ने यह क्या किया
शिष्यों की आस्था को अपने स्वार्थ नदिया में बहा दिया
शिष्यों की गुरु दक्षिणा की आड़ में न जाने कितने पाप किये
एकलव्यों ने अंगूठे ही नहीं...पूरे पूरे सर दिए
दुस्साहस किया किसी ने गुरु की बात को नकारने का
तो उन्होंने उसको निर्दयता से न जाने कितने श्राप दिए
शिष्यों ने न जाने इस भक्ती में कितनी पीड़ा सही
पर मैं बत्लादूं तुमको कि मैं
भक्त हूँ....बेवक़ूफ़ नहीं



प्रश्न उठा है मेरे मन में देखा जब यह पापाचार
ईश भी मेरा संग छोड़ेगा , क्या डालेगा मुझपे ऐसा हार?
भक्ती तो मैं उसकी भी करता
उसके बतलाये मार्ग पे चलता
क्या वो भी देगा मुझे नकार
क्या वो भी गुरु की भाँती
पहनेगा मेरे अंगूठों का हार
क्या तुम हो मेरे मन में बसते, क्या तुम हो गुरु वही
पर मैं भी बतला दूं तुमको कि मैं
भक्त हूँ...बेवक़ूफ़ नहीं



माँ सरस्वती ने तुमको दिया था एक ऐसा वरदान
ज्ञान स्रोत थे तुम कभी पर , अब करते केवल मुद्रा स्नान
अंगूठों की माला पहनना ,एकलव्यों को मझदार में छोड़ना
हो गया अब तुम्हारा गान
मैं भक्ती करता हूँ गुरूजी, भक्ती करता जाऊंगा
अपने शिष्य धर्म को जबतक प्राण हैं तब तक निभाऊंगा
देखो मेरे मुख चन्द्र पे ,
देखो कैसे मेरी भक्ती मेरे माथे पे चमक रही
पर याद रखना गुरूजी, कुछ करने से पहले
मैं भक्त हूँ...बेवक़ूफ़ नहीं
भक्त हूँ...बेवक़ूफ़ नहीं
भक्त हूँ..बेवक़ूफ़ नहीं!!

Sunday, June 12, 2011

दाग!Copyright ©

दाग लगे हैं दीवारों पे
दाग लगे हम सारों पे
दाग लगा है चन्द्रमा पे
सारी नदियाँ, सब धारों पे
पर दाग लगा जो आत्मा पे
वोह कैसे मिट पायेगा
कैसे पोंछें उसको हम तुम
कैसे वोह न दिख पायेगा



धर्म दाग से बचा नहीं है
न बची है राजनीति
दाग रहित तो राम नहीं है
न बेदाग़ है दधीची
दाग लगे हैं सब पे प्यारे
सब छुपाये हैं फिर रहे
और हम यहाँ अपने दागों का
प्रचार हैं कर रहे



कोई नहीं है यहाँ पे जिसका जीवन बेदाग़ हो
असत्य का परचम लहराए वोह जो
नकार दें इस सत्य को
हर दिन शीशे में देखो खुद को तो वोह
दाग दिख जाएगा
दाग लगा जो एक बार वोह गंगा स्नान से
भी नि मिट पायेगा



आत्मा हमारी चित्रफलक और
हम मानव हैं पापी
पुण्य कमाए वोह मानुष जो
इस सत्य को न नकारे कदापि
दाग मिटाए ईश ही केवल
ईश बनाए आत्मा शुद्ध
समर्पण कर दो उसको अपना चित्त
और बना दे वो तुझको बुद्ध
और बना दे वो तुझको बुद्ध
और बना दे वो तुझको बुद्ध

Tuesday, June 7, 2011

जान कर चलो, मान कर नहीं!! Copyright ©


न जाने कितनी सदियों से
भूमंडल पर यह रीत रही
कोई चल पड़ा , उस ओर ही भीड़ बही
झुण्ड में चलने की आदत हो चली
मान ली हर बात जो हर गड़रिये न कही
न नापा न तोला,न दिया ध्यान
क्या गलत है , क्या सही
अरे...
जान कर चलो, मान कर नहीं

सिंह अकेला चलता , और भेड़ झुण्ड में
सूर्य अकेला जलता, दीपमाला सा नहीं
उजाला करने के लिए
अंतर मन की रौशनी चाहिए, बाहर की नहीं
जान कर चलो, मान कर नहीं

धर्म के स्तम्भ ज्ञान पे टिके थे कभी
परमात्मा की अनुभूति पे आस्था थी टिकी
प्रतिमाओं और मसीहों को पूजने लगा जब मानुष
ठेकेदारों की तब धर्म जागीर बनी
अंधेपन की चादर में लिपटा इतिहास
बढा फिर भविष्य की ओर
जैसे मृत की सी अस्थियाँ बहीं
अरे जान कर चलो, मान कर नहीं

इतने गद्दी धारी आये और
गद्दी का मज़ा लूट के चले गए
हम बेचारे गले में माला
और फीते कटवाते रह गए
मान लिया कि , यह बदलाव लायेंगे
हमारी परिस्थितियों की पीड़ा हर जायेंगे
इनके निरंतर बलात्कार से भी नहीं सीखे हम
जो था सही...
कि जान कर चलो, मान कर नहीं

उस ज्ञान का क्या अभिप्राय
जो उपयोग में न लाया जाए
ईश्वर मंदिर में हैं, गिरजा और गुरूद्वारे में
पूजा पाठ में , दान में , जोग में
अरे भगवान् विवेक में है, चेतना में
किसी चार दीवारी , किसी पत्थर में नहीं...
जान कर चलो, मान कर नहीं...

मानना आसन है, जानना पारिश्रमिक
मार्ग पे चलना आसन है, बनाना कठिन
सौंदर्य को ताकना आसन है,
उसकी नीव रखना मुश्किल
मानना आसान, जानना कठिन
पर अज्ञान की परत जो चढ़ी है
उसे उतारना अनिवार्य है
और यह बहुत ही बड़ा कार्य है
मान लोगे बिना विवेक का प्रयोग किये
डाल लोगे शुतरमुर्ग की तरह सर मिट्टी में हो तो
कैसे जानोगे क्या गलत , क्या सही
इसीलिए अनुरोध....
जान कर चलो, मान कर नहीं
जान कर चलो, मान कर नहीं
जान कर चलो, मान कर नहीं

Monday, June 6, 2011

अधूरे !! Copyright ©


अधूरे सपने, अधूरे ख्वाब
अधूरे हम , अधूरे आप
अधूरी कायनात, अधूरी बिसात
अधूरी जीत , अधूरी यह रात
अधूरा जश्न , अधूरा जोश
अधूरा हल्ला, अधूरा खामोश
सारी कड़ी है अधूरी
कौन करेगा इसे पूरी




यह अधूरापन विराजमान जीवन में
इस कायनात का हिस्सा बन चला है
अधूरेपन का सांप पूरे जग को डस चला
मुकम्मल जहाँ की तलाश में
किसी को ज़मीन किसी को आसमा मिला
अधूरा मैं , अधूरे आप
इस अधूरेपन की सबके जीवन में छाप
मेरे यह शब्द भी अधू ...
मेरी यह काया भी...अध्.....
अ...

Friday, June 3, 2011

बरस !! Copyright ©


मेरी गुडिया के लिए......

इस बरस भी चमकी मेरी गुडिया
बरसी उसपे उपलब्धियों की बारिश
बरसी उसपे खुशियाँ
मेरी बहिन के जन्मदिवस पे
और फूल उसपे बरसाना चाहे मन
तो गुडिया मेरी नाच झूम झूम
मचा उछाल कूद
भुला दे सारे बरस पुराने
जो खुशियाँ बरसेंगी आगे
वोह हैं समेत सूद


जब भी मन घबराए प्यारी
मेरी ओर कदम बढा जाना
भाई तुझको थाम लेगा
तेरी घबराहट छान देगा
मिलें तुझको आशीर्वाद बड़ों का
मिले तुझको स्थिरता
अपनी चंचलता न खोये तू पर
आये तुझमें दृढ़ता
तुझपे चमके सूरज, चमके चाँद सितारे
सारी उम्मीदें झोली में तेरे,
पूरे हों सपने तेरे सारे


इस बरस में बरसे सारा पानी
पूरी हो अधूरी कहानी
कर ले मुट्ठी में जग सारा
और करे थोड़ी रूमानी
आशीष रहे ईश का तुझपे
हो तेरा मन स्वतंत्र
चमके तेरा तेज चहुँ ओर
जैसे हो तू संत


बधाई मेरी गुडिया
बधाई मेरे मणि पारस
बधाई हो हर पल तुझे
बधाई हो हर बरस!

ब्रिहन्नाल्ला!! Copyright ©


ऐसा क्लिबा एक युग में

एक बार ही जन्मा होगा
तृतीय प्रकृति होने पर भी
जिसे इतना सम्मान मिला होगा
घाघर चोली ओढ़े
एक हाथ में मृदंग
ऐसे जिसने गांडीव थामा
कि कौरव भी रह गए दांग
गन्धर्वों से शिक्षा लेके
ऐसे स्त्री सा जो चलता था
बाहू-बल ऐसा जैसे अन्दर
ज्वाला मुंखी जलता था
अज्ञात वास में ऐसा
जादू चला दिया
और क्लिबो के घ्रंस्पद
दर्जे को सुसज्जित बना दिया

नारी की गरिमा और बाहुबल पुरुष का
ऐसा अर्जुन बन बैठा था जब गुमनाम सा
तब उसके अन्दर एक शक्ति ने लिया जन्म
वोह जो उसको अजर बनाने वाली थी
उसकी प्रत्यंचा की गूँज
विश्व में गूंजने वाली थी
इस धैर्य शक्ति को संभाले ब्रिहन्नाल्ला
अज्ञात में छुपी रही(हा)
और जग को उस क्लिबे ने फिर पर्थ दिया

हम सबके अन्दर वोह क्लिबा है बैठा
बंद मस्तिष्क उसका अज्ञात वास
बस पहचानने की देर है
उस ब्रिहन्नाल्ला की शक्ति को नहीं पहचाना
तो अज्ञात ही रह जायेगी(गा)
और पार्थ कभी महाभारत में न निकलके आएगा
तो उसे निकालो बाहर
सुनो उसके गांडीव की प्रत्यंचा की ध्वनि
उठाओ ब्रह्मास्त्र
और निकलो युद्द पे
यह ही है यथार्थ,
और तुम्हारी(आ) मस्तिष्क का
ब्रिहन्नाल्ला ही है पार्थ
ब्रिहन्नाल्ला ही है पार्थ
ब्रिहन्नाल्ला ही है पार्थ!!