Wednesday, June 22, 2011
डर !!! Copyright ©
उधड़े रिश्तों से डर लगता है
टूटे पुलों से डर लगता है
लगता डर है आशाओं से
उम्मीद से केवल जग बनता है
मोरों की पोशाखों में गिद्दों से डर लगता है
धर्म के ठेकेदारों से डर लगता है
डर लगता है मूक दीवारों दे
हिम्मत से केवल जग बनता है
रंगीन शायरों से डर लगता है
नेता की चीखों से डर लगता है
लगता डर है राजनैतिक हथकंड़ो से
गणतंत्र होके ही देश बनता है
सोने से अब तो डर लगता है
बंद आँखों से सपने बुनने से डर लगता है
लगता है डर भावनाओं से मन की
खुली आँखों के सपनों से भवष्य बनता है
दोस्ती से अब तो डर लगता है
प्रेम करने से भी मन डरता है
लगता है डर टूटती रिश्तों की माला से
जग में सद्भावना बस फैलाने का मन करता है
चित्रफलक में रंग भरने से डर लगता है
कूची से रंग मिलाने से डर लगता है
लगता है डर कहीं भयानक दृश्य न दिखा दूँ
आज तो केवल विज्ञापन बिकता है
डर लगना बुरी बात नहीं
न है बुरा होता कोई सपना
उस डर के सहारे न जाने कितनो ने
पूरा किया है अपना सपना
डर लगे अनिश्चितता से तो लगने दे
उस डर के सहारे ही तू ज़िनदा है
मैं डरा था जब, घबराया था
तब ही खाई के ऊपर मैंने पुल बनाया था
जब काला बादल मंडराया था
तब ही मैं सागर से कश्ती निकाल पाया था
तो इस डर के सहारे ही मैंने किये हैं अद्भुत कर्म
यह उमीदें यह सपने यह कर्म यह धर्म
को दिया मैंने रूप
गाढ़ी काया और बनाया यह स्वरुप
तो अब डर न लगने का डर लगता है
तो अब डर न लगने का डर लगता है
तो अब डर न लगने का डर लगता है!!
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