Dreams

Tuesday, June 29, 2010

प्रथम पृष्ट ! Copyright ©


अंतिम पंक्ति ढूंढ रहा था

अभिप्राय जीवन का बूझ रहा था

समय से पहले बूढा होके

लुटी जवानी पे

बेकार ही रूठ रहा था

दिशाहीनता थी फिर भी

अंत कैसा होगा यह सोच रहा था

प्रथम पृष्ट की प्रथम पंक्ति

पहला कदम और पहली शक्ति

यह होना था मेरा प्रारंभ

किस गूँज का हो शक्नाध

यह होना था जीवन का स्तम्भ

इन बीते सालों में

अंतिम पंक्ति की यह खोज

व्यर्थ तो नहीं गयी

पहले प्रथम पृष्ट की प्रथम पंक्ति

ढूँढने की सद्बुद्धि प्रकट हो गयी

अंतिम पग वो होगा जहाँ मैं

प्रथम पग बढ़ाऊँगा

चाहे ऊपर चाहे नीचे

यह उत्तर मैं प्रथम पृष्ट से ही

समझ पाउँगा


पहला पग हो मेरा ऐसा

जिसे भय न हो मृत्यु का

ऐसे, जैसे दूर गगन

में उड़ान भरता पंछी

मन में तूफ़ान हो तो भी

प्रशांत हो मुखचन्द्र पे

अंगद के जैसे जहाँ भी रख दूँ

हिला सके न कोई यह वज्र भी

प्रथम पृष्ट हो उम्मीद भरा

प्रथम पंक्ति में हो संसार बसा

प्रथम शब्द हो ब्रह्म

प्रथम अक्षर ..एक नया आरम्भ

पहली रचना ऐसी हो जिस से फूटे जीवन

हरे पत्ते हों, प्रस्फुटित अंकुर

छलके उसमे यौवन

द्वेष नहीं हो , न हो किसी बात की शंका

ज़ोर ज़ोर से बाजे विजय यात्रा का डंका

त्यौहार मनाये पहली पंक्ति

पह्का अक्षर बजाये ढोल

पहली रचना हो पूजा की थाल

और पहला शब्द लगाये रोली

ऐसे जैसे हो नयी दुल्हन की सुसज्जित डोली

ऐसी हो प्रथम रचना

ऐसा हो प्रथम बोली


उम्मीद दिलाये प्रथम पृष्ट

आस जगाये प्रथम रचना..

नया दौर हो नयी उमंगें

हो नयी संरचना

अंतिम पग की चिंता मत कर

अंत तो किसने देखा

प्रारंभ हो नयी यात्रा

जैसे होली का सा रंग है फैंका

अंतिम पंक्ति तो प्रथम प्रिथ्त

का ही सार है

प्रथम पृष्ठ में , प्रथम पग में

ही बसी है किस्मत, बसा सारा संसार है

बढ़ा आगे प्रथम पग को

पगडण्डी चाहे हो संकरी

घबरा मत प्यारे , शंका मत कर

मत पीछे देख

चढ़े जैसे पहाड़ पे

एकाग्रचित्त होके चढ़ती निडर बकरी

अंत तेरा खिल उठेगा

अंतिम पंक्ति जगमगाएगी

यदि प्रथम पृष्ट की प्रथम रचना तेरी

बाज़ी मार ले जायेगी

बाज़ी मार ले जायेगी

बाज़ी मार ले जायेगी !

Monday, June 28, 2010

यह मुस्कान ज़रूर बिखरेगी !Copyright ©


आज बड़े दिनों बाद कलम उठाई

अंगड़ाई लेके ख्यालों की पतंग उड़ाई

थकी हुई आत्मा को झकझोड़ा मैंने

सोये हुए लहू पर नयी लहर दौड़ाई

जो सब काला, मैला और जीर्ण था

उसे निकाल फेंकने का प्रयास है यह

क्यूंकी आने वाले रंगीन, चमकदार

भविष्य का आभास है यह

सम्पूर्ण काया बदलनी होगी

जो छूट गया , उसे भूलना होगा

जो लुट गया उसका दर्द खुरच देना होगा

नयी सतह, नयी परत चढ़ानी होगी

और अपने विश्वास को संभालना होगा

आज आ गयी वो घडी,जिसकी थी मुझे प्रतीक्षा

देना अब मुझे है, नहीं चाहिए कोई भी भीक्षा

सम्पूर्ण हूँ मैं आज स्वयं में

यह है अब तक के जीवन की समीक्षा।


अब तक कोशिश कर रहा था

चीज़ें बदलने की,

कोशिश थी..किस्मत बदलने की

थर थर कांपा मेरा विश्वास

कभी कभी तो छूट गयी जीने की भी आस

उलट पुलट होता दिख रहा था सब कुछ

सब ओर था जहाँ-ऐ-आम, कुछ भी नहीं था

जहाँ--ख़ास

मगर मुझे पता नहीं था

कि ,जीवन गति से नहीं

गहरायी से होता है

प्रसन्नता बाहार से नहीं

भीतर से होती है

जीत औरों पे नहीं

स्वयं की होती है

संसार का कालापन, संसार से नहीं

अपनी दृष्टि में होता है

प्रेम का आभाव या सद्भावना का भाव

ह्रदय में होता है

तो यह ही जान ने

यह ही पहचानने की अभी तक थी कोशिश

अभी तक थी तलाश

गुमशुदा खुद की

अब कुछ कुछ पाने लगा हूँ

इस ख़ुशी के गीत गुनगुनाने लगा हूँ

मन के स्तम्भ हैं पक्के

विजय का परचम लहराने लगा हूँ

आत्मा, जो मैं सोचता था मर चुकी है

साहस की नीव, जो मैं सोचता था, ढेह चुकी है

बुलंदी, इतनी कभी न थी

ज़िन्दगी, इतनी कभी न थी।


चाहे तूफ़ान बनके यह जीवन

टकराए मुझसे

मैं डटा रहूँगा

चाहे बिजली कड़के सर के ऊपर

मैं अब खड़ा रहूँगा

पर ऐसा होगा नहीं

क्यूँकी अब सब बदल रहा है

समय चक्र सही गति से

सही ओर बढ़ रहा है

काला सब कुछ चमकने लगा है

कुछ करने और जीने का शोला

भड़कने लगा है

लिखते लिखते अब मेरे बोल

भी मुस्कुरा पड़े

धुन अपनी ही बना के

खुद ही गुनगुना पड़े

सारी गहराई और ऊंचाई

नाप रहे मेरे सपने

सबको एक सूत्र में बाँध दूंगा

चाहे हों पराये या अपने

लेखनी अब जवान हो चली

मदमस्त उसकी चाल हो चली

सारी सुन्दरता जो भीतर है

वो बाहर भी दिखेगी

कठिनाई हो चाहे तूफ़ान

यह अब ज़रूर बिखरेगी

भीतर की मुस्कान

ज़रूर बिखरेगी

ज़रूर बिखरेगी!

ज़रूर बिखरेगी !

Sunday, June 20, 2010

बड़ा दिन..!!! Copyright ©


एक बरस में एक बार ही

पितृ दिवस आता है

और एक बार ही जन्मदिन

मनाया जाता है

परन्तु इतने बरसों के

तुम्हारे तप को मैं एक दिन

में ही कैसे बतलाओं

तो यह शब्द , यह लय

यह भावना मैं आज

समर्पित करता ताकि

हर पल स्मरण रहे वो त्याग

वो स्नेह, वो छाती की गर्मी

वो विश्वास, जो तुमने मुझे दिखाया

बरसों तक माली की तरह मुझे सींचा

और इस योग्य मुझे बनाया

अब मेरी बारी तुमको दंडवत करने की

सारी कठिनाई , सारी दुविधाएं तुम्हारी, हरने की

आज पितृ दिवस है और तुम्हारा जन्मदिन

ग्रीष्मकालीन अयनांत जग के लिए

सबसे लम्बा दिन

मेरे लिए पर्व है यह, मेरे लिए तो

बड़ा दिन !


लोग पूजते हर को, हरी को भोग लगाते

हर हर महादेव की गुहार लगाते

मेरे तो हर भी तुम हो, हरी भी

ब्रह्मा, विष्णु महेश का

संगम भी तुम ही

एक बार पुनः मैं याद करूँ आज

वो तुम्हारे कंधे की सवारी

और जो पहला खिलौना लाये थे तुम

वो जो पहली गाडी

पीठ थपथपा के कहा था तुमने

आँखों का हूँ तुम्हारे तारा

ऐसा लगा था जैसे

मुट्ठी में था संसार सारा

कोसता था जिस डांट को ,

वो थी तुम्हारा मार्गदर्शन

जिस छड़ी से रहता भयभीत

आज वो हो गयी है मेरा सहारा

तुम्हारा आलिंगन अनेक भावों का संगम था

बेटे न घबरा मैं हूँ

बेटे गिरा तो क्या हुआ, संभाले तुझे, मैं हूँ

अपने हाथ से निवाला जो तुमने खिलाया

वो शक्ति सा लहू में मेरे आज है दौड़े

वो सीख, वो उपदेश बचपन के

आज थामे है मेरे मन के घोड़े

संस्कार , श्थिरता , और आत्मसम्मान

का जो था तुमने पाठ पढाया

उसी ने मुझको हर कठिनाई से

पार कराया

आराध्य मेरे हो तुम

मेरी भक्ति आज स्वीकार करो

मेरा अस्तितिव तुमसे है

कुछ नहीं है तुम्हारे बिन

मेरे लिए पर्व है यह, मेरे लिए तो

बड़ा दिन !


प्रयास मेरा हरदम है यह

कि जिन हाथो ने मुझे संभाला

उस हाथ को थामे मैं एक दिन

तुम्हे अपनी दुनिया दिखाऊंगा

जिस कंधे पे चढ़ के मैंने

सारा संसार देखा है

उस कंधे का सारा बोझ

अपने कंधे कर जाऊंगा

धुंधली होती दृष्टि को

मैं नयी रौशनी दिलाऊंगा

आराध्य तो हो तुम मेरे हरदम

अब बस नतमस्तक हो जाऊंगा

पिता छत्र है, पिता है माली

पिता है ज्योति , पिता है बाती

सबके लिए चाहे हो वो जन्मदाता

मेरे लिए तो ईश वही है

वो ही विधाता

जन्मदिन पे आज तुम्हारे

मैं दंडवत करता हूँ

पूरे जग को तुम्हारे

चरणों में अर्पण करता हूँ

चरनामृत है,

दिशा भी है, मार्गदर्शक

तुम्हारे पद चिह्न

मेरे लिए पर्व है यह, मेरे लिए तो

बड़ा दिन !

मेरे लिए पर्व है यह, मेरे लिए तो

बड़ा दिन !

मेरे लिए पर्व है यह, मेरे लिए तो

बड़ा दिन !