रक्षाबंधन और जन्मदिनो से
कहीं ऊंची है यह अनुभूति
अद्वितीय, अद्भुत और अपूर्व
है उसकी गरिमा
सिर्फ एक युग में एक बार ही
प्रकट है होती
पार्वती सी पवित्रता
और दुर्गा का तेज लिए
सरस्वती की चमक माथे चढ़ाये
और लक्ष्मी का तिलक लिए
लिया जन्म उसने मेरे घर में
किलकारियों से झोली भरदी
उल्लास से सारे कोने भर दिए
आज उसी अद्भुत अनुभव को मैं दोहराता हूँ
इक्कीसवीं इस वर्षगाँठ पे
आज तेरे ही गुण गाता हूँ
प्यारी बहना ऐसे मुस्कुराते
तू सौ साल जिए
जैसे मेरी झोली भर दी तूने
हर ओर ऐसी खुशियाँ फैलाते जा तू
जैसे देवी ने प्रसाद दिए!
बचपन के वो दिन आज तुझे
स्मरण कराना चाहता हूँ
जब मेलों मील भागा था मैं
तेरी पहली मुस्कान को देखने के लिए
और कैसे हस के तूने गले लगाया मुझको
मेरा मन जैसे अमृत पिए.
फिर छुटपन के वो सारे झगडे
और वो सारी डांट और मेरा गुस्सा
जो तूने चुप चाप सहे
जैसे सारी त्रुटियाँ पीकर भी
गंगा कल कल, चुपचाप बहे
कैसे मेरी हर गलती पे भी मुझे
आराध्य का सा स्थान दिया
आज तुझे मैं बतलाता हूँ
हमारे इस बंधन में
तू है चमकती बाती और तुझे थामे
मैं तेरा दिया
आज समय है बतलाने का
क्यूँ तुझे अपूर्व जग कहे
“जया” से तुलना क्यूँ हो तेरी
और क्यूँ तेरी गरिमा की चादर
की गर्मी के अन्दर हम सब रहे
ह्रदय मेरा विधाता से
तेरे लिए प्रार्थना कर रहा
इस प्रतिमा की मुस्कान हमेशा
हरदम बरकरार रहे
तेज फैलाते रहे यह जग पे
हर रंग , वैभव और ढेरों खुशियाँ
हरदम इसकी झोली में रहे.
यह मैं जानू
हरदम, प्रतिपल
कोई नहीं ऐसा दूसरा
इश्वर नहीं बनाता हर किसी को
अपूर्वा
अपूर्वा
अपूर्वा !