Dreams

Wednesday, June 16, 2010

सलवटें .... Copyright ©


स्थिरता, समानता और अकुटिल

बनाना चाहते सब अपना जीवन

मखमली सी चादर सा निर्मल

बनाने की होड़ में जुट जाते

और इस प्रक्रिया में इन

घुमावदार , लहराती

इन सुन्दर सलवटों को भूल जाते

यह सलवटें रुकावट दिखती हैं

चादर फैलाते फैलाते इनकी ओर

नज़र नहीं गिरती है

लेकिन क्या सही में यह रुकावट हैं ?

क्या सही में चादर को फैलाना

ही जीवन की एक मात्र बनावट है?

जीवन की सारी ऊर्जा, सारी शक्ति

सारी मेहनत, सारी भक्ति

इन्ही सलवटों को ठीक करते करते

बीत जाती है

और यह सलवटें बिन कुछ कहे

बिन कुछ बोले..सपाट हो जाती हैं

सलवटें !


गौर फरमाइए ….

इन सलवटों पे

यह “सलवटें” न हों तो

जीवन का क्या स्वाद

एक असंभव सपने को साकार

करने का कहाँ उन्माद

यदि यह न हो तो क्या रस

नीरस, उदासीन निरुत्तर जीवन ,बस

ऊर्जा छुपी इन सलवटों में

जीवन का सार छुपायें कसमसाती

यह सलवटें

कोई ठोस आकर नहीं इन का

कोई लय नहीं

कभी इस ओर कभी उस ओर पलट जाती

यह सलवटें

इन्हें किसी का भय नहीं

और पते की बात तो यह है

चाहे जितनी जटिल, जितनी घुमावदार

जितनी कठिन हों यह सलवटें

सुलझती अवश्य हैं

बस इन्हें समझना अनिवार्य है

समझ जो लें इनकी उलझनें

स्वयं सुलझ जाएं

यह सलवटें

हर किसी की सलवटें मौलिक होती हैं

यह ही इश्वर की हर एक के लिए

चुनौती होती है

अपनी सलवटों को वो स्वयं सुलझाए

और इस प्रक्रिया में

उनके नटखट, चटपटे स्वाद का भी

लुत्फ़ उठाएं

क्यूंकि सलवटें न होती तो

जीवन न होता

यह सलवटें!


सलवटों से प्रेम करना सीख

उनसे लड़ मत, उन्हें समझना सीख

कर प्रयास कि इनकी जटिल संरचना

का रहस्य एकदम शालीनता से,

समझ पाए

और अपने जीवन की चादर को

मनचाहे ढंग से फैलाये

भयभीत न हो

घबरा मत

यह बनी ही हैं सुलझाने को

और जब तू इन्हें सुलझा लेगा

इश्वर की भक्त सा होगा

तेरी मादकता

और ख़ुशी की न होगी

पराकाष्टा

सुलझा पाए तो बुद्ध कहलायेगा

और न सुलझा पाए तो

सही रूप से “ मानव” बन जाएगा

जो भी हो

बस आनंद ले इनका

अनुभव जोड़

न ले कौतुहल की

करवटें

यह हैं तेरे

जीवन का सत्य

तेरे जीवन की गुत्थी

की सलवटें

सलवटें

सलवटें!

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