आज बड़े दिनों बाद कलम उठाई
अंगड़ाई लेके ख्यालों की पतंग उड़ाई
थकी हुई आत्मा को झकझोड़ा मैंने
सोये हुए लहू पर नयी लहर दौड़ाई
जो सब काला, मैला और जीर्ण था
उसे निकाल फेंकने का प्रयास है यह
क्यूंकी आने वाले रंगीन, चमकदार
भविष्य का आभास है यह
सम्पूर्ण काया बदलनी होगी
जो छूट गया , उसे भूलना होगा
जो लुट गया उसका दर्द खुरच देना होगा
नयी सतह, नयी परत चढ़ानी होगी
और अपने विश्वास को संभालना होगा
आज आ गयी वो घडी,जिसकी थी मुझे प्रतीक्षा
देना अब मुझे है, नहीं चाहिए कोई भी भीक्षा
सम्पूर्ण हूँ मैं आज स्वयं में
यह है अब तक के जीवन की समीक्षा।
अब तक कोशिश कर रहा था
चीज़ें बदलने की,
कोशिश थी..किस्मत बदलने की
थर थर कांपा मेरा विश्वास
कभी कभी तो छूट गयी जीने की भी आस
उलट पुलट होता दिख रहा था सब कुछ
सब ओर था जहाँ-ऐ-आम, कुछ भी नहीं था
जहाँ-ऐ-ख़ास
मगर मुझे पता नहीं था
कि ,जीवन गति से नहीं
गहरायी से होता है
प्रसन्नता बाहार से नहीं
भीतर से होती है
जीत औरों पे नहीं
स्वयं की होती है
संसार का कालापन, संसार से नहीं
अपनी दृष्टि में होता है
प्रेम का आभाव या सद्भावना का भाव
ह्रदय में होता है
तो यह ही जान ने
यह ही पहचानने की अभी तक थी कोशिश
अभी तक थी तलाश
गुमशुदा खुद की
अब कुछ कुछ पाने लगा हूँ
इस ख़ुशी के गीत गुनगुनाने लगा हूँ
मन के स्तम्भ हैं पक्के
विजय का परचम लहराने लगा हूँ
आत्मा, जो मैं सोचता था मर चुकी है
साहस की नीव, जो मैं सोचता था, ढेह चुकी है
बुलंदी, इतनी कभी न थी
ज़िन्दगी, इतनी कभी न थी।
चाहे तूफ़ान बनके यह जीवन
टकराए मुझसे
मैं डटा रहूँगा
चाहे बिजली कड़के सर के ऊपर
मैं अब खड़ा रहूँगा
पर ऐसा होगा नहीं
क्यूँकी अब सब बदल रहा है
समय चक्र सही गति से
सही ओर बढ़ रहा है
काला सब कुछ चमकने लगा है
कुछ करने और जीने का शोला
भड़कने लगा है
लिखते लिखते अब मेरे बोल
भी मुस्कुरा पड़े
धुन अपनी ही बना के
खुद ही गुनगुना पड़े
सारी गहराई और ऊंचाई
नाप रहे मेरे सपने
सबको एक सूत्र में बाँध दूंगा
चाहे हों पराये या अपने
लेखनी अब जवान हो चली
मदमस्त उसकी चाल हो चली
सारी सुन्दरता जो भीतर है
वो बाहर भी दिखेगी
कठिनाई हो चाहे तूफ़ान
यह अब ज़रूर बिखरेगी
भीतर की मुस्कान
ज़रूर बिखरेगी
ज़रूर बिखरेगी!
ज़रूर बिखरेगी !
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