Dreams

Wednesday, December 21, 2011

गुमनाम उजाले...रौशन सितारे ! Copyright ©


गुमनामी की चादर ओढ़े
मंद मंद मुस्कुराता रहा
सीने की जलन को दिया बनाता रहा
चिंगारियों ने गुमनामी में भी न छोड़ा मुझे
मैं गुमनाम उजाला ही चाहता रहा


भाग्य का कटोरा हो या किस्मत की जागीर
बादशाहत ही है मन में, चाहे जेब से हों फ़कीर
छाप लगी है माथे पे, गुमनामी उजाला ही बनेंगे
चाहे चमकते भविष्य की हो हाथों में लकीर


मुस्कराहट की कीमत नहीं होती, किसने कहा
उनसे पूछो जिनकी ज़िन्दगी खर्च हो गयी
मैंने तो गुमनामी का ही उजाला माँगा था
मुझे तो अँधेरे की खामोशी भी न मिली


उजाले, चमकदार उजाले
अन्धकार को चीरते उजाले


उजाले मंज़ूर थे मुझे पर केवल गुमनामी में
सिसकती सांसों के ताले, अकेलेपन की चाबी में
इतिहास का वह गुमनाम पन्ना बन्ने की ख्वाहिश थी
कस्तूरी , जिसे मृग लिए घूमता है अपनी नाभी में


पर मेरी जीत , किस्मत के दरबार में गुस्ताखी थी
मेरी ज़िंदगी तो उसके कोठे की साकी थी
बाँध घुंघरू , नाच नचाया उसने
क्युंकी देनदारी अभी बाकी थी



तो गुमनामी के उजाले की चाह रह गयी
इतिहास के पन्ने का गुमशुदा होना रह गया
इतनी ठोकर पड़ी जीवन में कि मैं
न चाहते हुए भी रौशन सितारा बन गया
न चाहते हुए भी रौशन सितारा बन गया

Monday, December 19, 2011

भाप Copyright ©






जब बर्फ के आगोश में धधकती ज्वाला समाई
जब सुलगते शोलों में ठंडी धारा लहराई
जब आत्मा की ठंडक में पड़ी परमात्मा की छाप
तब हुई उद्गम यह भाप



गीली, गर्म, निराकार
उबलते पानी सी गर्म,
बारिश की बूंदों सी धार
जीवन का प्रतिबिम्ब
आत्माओं का मेघ मल्हार
हिस्स हिस्स करती गूँज रही कानो में
जैसे भरत मिलाप
मेरे तेरे, तेरे मेरे
प्रेम की यह भाप


मैं धधकती अग्नी, तू शीतल पानी
मैं शोले सा उबलता, तू बर्फ सी दानी
इस मिलन से जो निकलेगी तेज़ भाप
वह होगी, शंकर की माला
रूद्र का जाप


इस भाप को निकलने दे
देने दे जीवन
पैदा होने दे बूँदें
उठने दे स्पंदन
लगाने दे मौसम को
लंबा आलाप
तेरे मेरे मिलन की जब निकलेगी भाप


इस भाप के चरित्र का ज्ञान है नहीं पर
इससे जलने के दर्द की है अनुभूति
इसकी ठंडक का भी रसपान किया है
यह किसी किसी को ही है छूती
तो भीग इस भाप में
होने दे वर्षा
इस अग्नी पे , युगों युगों से
पानी नहीं है बरसा
इस मिलन के बाद न रहेंगे कोई सवाल
न उत्तर होंगे सरल
न होंगे दुःख के शव
न होंगे सुखमय मैं और आप
न होंगे पुण्य के कमंडल
न होंगे कोई पाप
सब विलीन हो जाएगा
रह जायेगी बस यह भाप
रह जायेगी बस यह भाप
रह जायेगी बस यह भाप

Wednesday, December 14, 2011

जश्न-ए-बहारा ! Copyright ©


जब खुश रहने की कीमत चुका चुका ,
कंगाल हो गया.
तब मालूम हुआ क़ि ..
आंसू जो छलके थे..वह अमृत धारा थे...
काँधे जो झुके थे वो किसी का सहारा थे...
कमर जो टूटी वह चौड़े सीने का इशारा थे....
और वह आंसू...
जाम-ए-ज़िन्दगी...
जश्न-ए-बहारा थे




जब कोशिश कर कर थक गया था
तब मालूम हुआ क़ि
वह हार, जीत की ओर इशारा थे
वह बहते लहू की बूँदें...माथे के तिलक की धारा थे
वह ज़ख्म, शहंशाह के ताज का सितारा थे
और वह थकान
आराम-ए-बादशाह
नवाब-ए-शिकारा थे



इल्म-ए-किस्मत
ज़ख्म-ए-मोहोब्बत
खून-ए-तख़्त
यह सब....
दूर नदी को पार करके
केवल एक किनारा थे
ज़िंदगी तो लम्हों में जी जाती है
लहरों में समेटी जाती है
बाकी सब साए,
केवल तस्वीर को पूरा करती कीलें
उसे थामते, सहारा थे
ज़िंदगी..
खुशनुमा लम्हों में समेट ले ए बन्दे
यह लम्हे ही तेरी कहानी के सितारा थे
जाम-ए-ज़िन्दगी
जश्न-ए-बहारा थे