Dreams

Monday, December 19, 2011

भाप Copyright ©






जब बर्फ के आगोश में धधकती ज्वाला समाई
जब सुलगते शोलों में ठंडी धारा लहराई
जब आत्मा की ठंडक में पड़ी परमात्मा की छाप
तब हुई उद्गम यह भाप



गीली, गर्म, निराकार
उबलते पानी सी गर्म,
बारिश की बूंदों सी धार
जीवन का प्रतिबिम्ब
आत्माओं का मेघ मल्हार
हिस्स हिस्स करती गूँज रही कानो में
जैसे भरत मिलाप
मेरे तेरे, तेरे मेरे
प्रेम की यह भाप


मैं धधकती अग्नी, तू शीतल पानी
मैं शोले सा उबलता, तू बर्फ सी दानी
इस मिलन से जो निकलेगी तेज़ भाप
वह होगी, शंकर की माला
रूद्र का जाप


इस भाप को निकलने दे
देने दे जीवन
पैदा होने दे बूँदें
उठने दे स्पंदन
लगाने दे मौसम को
लंबा आलाप
तेरे मेरे मिलन की जब निकलेगी भाप


इस भाप के चरित्र का ज्ञान है नहीं पर
इससे जलने के दर्द की है अनुभूति
इसकी ठंडक का भी रसपान किया है
यह किसी किसी को ही है छूती
तो भीग इस भाप में
होने दे वर्षा
इस अग्नी पे , युगों युगों से
पानी नहीं है बरसा
इस मिलन के बाद न रहेंगे कोई सवाल
न उत्तर होंगे सरल
न होंगे दुःख के शव
न होंगे सुखमय मैं और आप
न होंगे पुण्य के कमंडल
न होंगे कोई पाप
सब विलीन हो जाएगा
रह जायेगी बस यह भाप
रह जायेगी बस यह भाप
रह जायेगी बस यह भाप

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