Dreams

Wednesday, May 26, 2010

अब, मेरी बारी! Copyright ©


बचपन से ही देख रहा मैं

कितने करतब कितने खेल

बूझ बूझ के खुद ही सीखी

मैंने यह दुनिया की रेलम पेल

किसी का सच, किसी का झूठ

कोई चुप रहके बस पीता लहू का घूँट

कोई करता चापलूसी

कोई करता मक्कारी

कोई सच के सहारे ही जीतना चाहता

दुनिया सारी

यह सब सीख समझके मैंने भी

भर ली अपने रंगों की पिचकारी

मुझसे बचके रहना अब तुम

क्यूँकी,

अब, मेरी बारी।


चुप चाप रहा हूँ

चुप चाप चला हूँ

बिना एक आवाज़ किये

कोई पहुंचा चाँद पे तो

किसी ने ध्वज चरों ओर लहरा दिए

किसी ने पकड़ी राह स्वार्थ की

किसी ने धर्माथ किये

किसे ने उजाड़ी दुनिया तो

किसे ने घर आबाद किये

कैसे सब बस दौड़ते रहे

और मेरी ओर न ध्यान दिया

मेरी गति को धीमी समझा

और मेरे विचार का त्याग किया

आलोचक तो बहुत मिले

पथ्स्भ्रष्ट भी हुए हम

बिन कृष्ण जैसे सारथि के

पथभ्रष्ट हो जाते कभी

और सहते गए हर एक हार

हर एक चोट, हर एक ग़म

कभी ख्याल यह आया कि

किस्मत ने समझा हमे बाज़ारू

अधनंगा करके छोड़ दिया कभी

और सबके आगे लाज उतारी

कभी समझा कि बाकी हैं तेज़ हमसे

हम ही रह गए कम

घबराते घबराते कदम रखे

आँखें भी हुई नम

लेकिन इन सब अनुभवों को मन में

रखके पुनः लगायी किलकारी

और कह डाला मन ही मन

देखी तुम सब की कलाकारी

मुह पे मुस्कान और बगल में कटारी

मुझसे बचके रहना अब तुम

क्यूँकी

अब, मेरी बारी।


स्वयं के बने सिद्धांतो

और स्पर्धा में भागने की

लटक गयी सर पे तलवार दुधारी

चेहरा हरदम प्रशांत सा था

चाहे मन था कितना भारी

सीख लिए सारे खेल मैनी

और सीखी सारी चमत्कारी

सिद्धांतों की जड़ों से ना टूटने

दिया स्वयं को

बस करता चला गया मैं जमा

सब तरकीबों की रेज़गारी

ताकि आज यहाँ खड़ा हो के

बोल सकूँ मैं कि

बहुत हो गयी सत्ता की ठेकेदारी

मुझसे बचके रहना अब तुम

क्यूँकी

अब, मेरी बारी

अब, मेरी बारी

अब है मेरी बारी!

Tuesday, May 25, 2010

Balancing Act! Copyright ©


The first balance you ever tried
Was to walk on your own with a big stride
The first time you acted
When you faked and cried
To get attention
Come adolescence
And you knew you had the genes
For juggling and
In your pocket laid
Your histrionic beans
Not before you reached your teens
You performed your first play
Your scene one
You managed girlfriends,grades
And was stamped an “obedient son”
Stepping into youth,
It was a matter of fact
You had become the master
Of the worldly balancing act!

Boss in the office and
Boss at home
When all you wanted
Was to build your own little Rome
Fake smiling
And artificially warmed hugs
Juggling between being the office doormat
And house hold rugs
You have made it mate
You have written with golden words
Your shining fate
But with this is your dream, your soul
Still intact
Even if you’ve become an expert
At the balancing act?

It was all about balancing
And all about acting
The better you’d balanced
The better you’d sustain
The better you’d let go
The persistent pain
The better you’d acted
The more they’d love you
The lesser they’d poke
The lesser they’d shove you
But is this balance
You really seek
Are you this frail?
Are you this weak?
That you’d want to let go off
The tiny dream you so privately nurtured
With all the balancing and acting
See what you have cultured
A docile, spineless puppet
How low has your self- respect
You’ve left to plummet
It’s lost, it’s gone
And that’s the fact
And now with your soul
You can’t even interact
And all because of this
Worldly balancing act.

Balance is necessary, I agree
But not at the cost of being free
Not , that you have to let go of your dream
Not that you will kill your self-esteem
Be true to yourself and to the world around
Only then will your act be profound
Only then will your balance be attained
And your place in history inked and sustained
Hold your own, hold it high
Straighten your back
Even if they mock you
And at first you feel shy
Keep the faith and keep it strong
Balancing and acting would not take you long
Tighten your belts and face the stage
Like a king and not a page
Speak your mind ,loud and clear
Just the truth and not to attract
Enough of this balancing act
Enough of this balancing act
Enough of this balancing act!

Monday, May 24, 2010

छल के चल दें या रहे अटल ! Copyright ©


हर दरवाज़े पे लात मार दी

जिसने माँगा उसे दिया सलाम

जी हुजूरी भी कर के देख ली

फिर भी न पहुंचा इनकी भूख को आराम

साम दाम दंड भेद सिखलाते है शास्त्र

जब पहले तीन न काम करे तो

प्रयोग में लाओ चौथा ब्रह्मास्त्र

पर क्या करें जब सीमित हो इनकी सोच

संकुचित हो मानसिकता और

दूरदृष्टि को आ गयी हो मोच

कितनी बार कोई समझाए

और कितनी करे गुहार

जब दबा दिया जाए हर विचार को

और कर दिया जाए आवाज़ का संघार

कैसे होगा प्रयास और कैसे होगा विकास

कब तक हम भी बैठे रहेगे

रोज़ होने के लिए शिकार

कब तक?



मन में फूटे प्रश्न बार बार

क्या इसमें समय नष्ट करना है समझदारी

या आगे बढ़के ललकारने की है जवाबदारी

द्वन्द युद्ध हो जब खेल रहा

चुप चाप बैठना हो जाये ज़रूरी

आवाज़ उठाएं या पकडे नयी राह

झोंक दे स्वयं को अग्नि में

या नए सूरज की रखें चाह

बदले सोच या बढ़ जाएँ आगे

और पकड़ ले नयी उमंगो के धागे

एक बात तो समझ गए हम

जिस द्वन्द का है ऊपर वर्णन

उत्तर उसका सिर्फ एक ही निकलता

भैया “ पहले संचय फिर वितरण”

“भूखे पेट” संग्राम नहीं आता

“खाली हाथ” इन्कलाब नहीं आता

सागर चाहे कितना हो अन्दर

बिना स्वार्थ के कोई भी सैलाब नहीं आता.

खुद राह न ढूंढ न तुम जब तक

तब तक तो खुदा भी राह नहीं दिखाता

कह देता अब तो स्वयं से हरदम

झेल जितना झेल सके जब तक

स्वाभिमान को कोई ठेस नहीं पहुंचाता

जिस दिन पहुंचे चोट उसे तो

दे पलट के उत्तर तू भी

वो बगावत नहीं इन्कलाब है कहलाता



प्रेम की भाषा न समझे जो

उसे तू प्रेम की भाषा मत समझा

समय नष्ट न कर प्यारे

चुप चाप आगे बढ़ जा

एकाग्रचित्त होना है तेरे बस में

कारवां तो तेरा बन ही लेगा

तू बस अपनी राह मत खोना

आगे खड़ा तेरा सवेरा

जो बाधा डाले पथ में

उनको छल के तू निकल

ये बस तेरा कर्म होगा

चाहे कहे इसे कोई भी छल

घबरा मत,डगमगा मत

बढ़ चला ही तू चल

जब गतिमय हो जाएगा तू

और हो जाये तेरी यात्रा सफल

तब एक बार पीछे मुड़ के

देख लेना

जो दबा रहे थे कल तक तुझको

वो ही रहे हैं तेरे पीछे चल

जी हुजूरी कर रहे तेरी

और तेरे गुण गा रहे प्रतिपल

यह सब होगा बस अगर तू रहेगा अडिग

घबराये न, काम किये जा और

खड़ा रहे अचल

खड़ा रहे अचल

खड़ा रहे अचल

Friday, May 21, 2010

Sweet Flower ! Copyright ©


I had always wished
For a person who
Would resemble
A beautiful flower of spring
Whose opened petals
Would,a smile to my face, bring
Whose fragrance would remind
Me of youth
And the bright colors
Of her being would
Fill my life with sweetened truth
Love!

In this quest of that flower
I saw her
Dancing in the rain
Bright beautiful smile
And a twinkle in her eye
Which made my heart
Stop for a while
I came close to her
To make her mine
And to take her in
My arms and fly away
So far
But when I came closer
I saw that her beauty
Was because she was rooted
To the ground
The flower could not be won
Or taken home to be put in the flower pot
Her beauty , which had made me smile
was because she could not be taken
people like me could try
but it would not be shaken

And now I dream of her
That I wake up
And one day she is next to me
But I know that
That flower could only be mine
If she wanted to be
But even if she is mine
One day, it doesn’t matter
What matters is her smile
And the twinkle in her eye

Oh sweet flower may you
Always spread the intoxication
And spell bound
Men like me
So that they can
Live and feel the purity
Of spring
And the happiness
You bring
Oh sweet flower
Sweet flower I will always love you
I want to sing

Wednesday, May 19, 2010

भूखा बावरची ! Copyright ©


भूख हर ओर है बिखरी

जीतने की भूख

वैभव की भूख

समृद्धि की भूख

ख्याति की भूख

खरार्नाक है यह भूख

“स्वयं” को निगलती यह भूख

लेकिन इस से भयावह है

अन्दर का कौतुहल

भीतर की उत्सुतुकता

और हलचल

जो बांधे नहीं बंधती

किसी भी पकवान के पकने से पहले

जो घुमा देती करछी

जैसे हो भूखा बावरची


आज धैर्य न जाने कहाँ खो गया है

कौतुहल ही कौतुहल मचा है

धर्मराज ने जो सिखलाया था

पौरुष की परिभाषा को

उसमे धैर्य था सबसे ऊपर

आज न जाने कहाँ गया यह भाव ह्रदय से

आज तो जीना उत्सुकता मैं हो गया दूभर

धैर्य था गहना सीता माँ का

और द्रौपदी का विश्वास भी

आज तो न है इस युग की नारी, सीता

ना है बनवास कहीं

शायद परिस्थिति ही बदल गयी हैं

सब चाहें समय से पहले सब कुछ होना

आत्मीयता, प्रेम, विश्वास खो भी दें

पर समय किसी को न आज है खोना

इस भूखे बावरची ने

अपने मन की हलचल से

खो दी है शक्ति

विश्वास की

मन चाहा निर्णय न पाने पे

छोड़ दी है डोरी

प्रयास की

और इस कौतुहल के ही लिए

पकडे है हाथ में भाला और बरछी

बन गया मानव नरभक्षी

भूखा बावरची


तन और मन के स्वास्थ के लिए

भविष्य के सूरज के सूर्योदय

और भूत के खोये सूर्यस्थ के लिए

कर लो आँखे बंद

धैर्य का धागा पकड़ो

और करलो मन को प्रचंड

कौतुहल में बस तनाव छुपा है

रोग का चुनाव बसा है

चिंता चाहे जिसकी भी हो

होती चिता सामान है

धैर्य जो धरता जीवन में

वो “शिव” का प्रमाण है

स्वयं से कहदो

आज नहीं तो कल तो होगा

और पहनूंगा मैं जीत का चोगा

पहना दो मुझे सहनशीलता

और धैर्य करो मुझे प्रदान

हर स्थिति में डटे रहूँ मैं

और धैर्य हो इसका निदान

इतिहास रच दूँ

हो जाऊं सत्य का साक्षी

नहीं रहना घबराहट में

नहीं होना

भूखा बावरची

नहीं होना

भूखा बावरची।

Tuesday, May 18, 2010

अधनंगा भविष्य ! Copyright ©


चौराहे पे बैठे

इन अधनंगे बच्चो की

सुनाता आज हूँ कहानी

कितनी जल्दी आ गया बुढापा

और कैसे खो गयी इनकी जवानी

अभागे भी नहीं कहना चाहता

क्यूँकी भाग्य तो है इनका भी

चाहे जितना हो भूखा

जितना नंगा

सच तो है इनका भी

जाने कितने साल इन्होने

यह नंगापन भोग लिया

अमीरों की सेवा करके

न जाने कहाँ अपना बचपन

झोंक दिया



मेहनत की रोटी कही पे

पसीना इनका ऐसे बहता

जैसे हो गन्दा पानी

छत्र नहीं पिता की सर पे

और न माँ की छाती की गर्मी

और ना ही लोरियां

न ही नानी की गोद में कहानी

मासूम दिल को कठोर कर दिया

छेनी हथोडी ईंट गारों ने

इनसे सारे सपने छिन गए

और मूह मोड़ लिया सितारों ने

“समझदार” हो गए है इतने

कि जाने यह सब का मतलब

पता इन्हें है कौन मदारी

और कौन दिखाएगा इनको करतब

सौम्य हथेली होना था जिसको

वो आज बन गया है हथोडा

कोमल दिल को इनके

जीवन के थपेड़ो ने

बड़ी बेरेह्मी से है झाक्झोड़ा

उत्तरदायी कौन है

इन उगते पौधों को बेजान बनाने का

उत्तरदायी कौन है

इनके बचपन को नीलाम कराने का

मैं, आप और हम सब

अपने बच्चो को फूलों सा सींचते

और इनको , झूठन, घूरों सा

इस जीवन चक्की में पीसते

अपने जीवन के पौधे

कैसे हो रहे हैं स्फूर्ति, सेहत से

रंग बिरंगे

जब यह चौराहे पे घूम रहे हैं

अधनंगे?



एक निवाला अपने हाथ से

इन तक पहुंचाना है

इनको भी बस एक बार

हमे गले लगाना है

इनको बचपन के सारे सुखों से

अवगत करना है

साक्षरता और मानवीय ज्ञान

के सागर में इन्हें नहलाना है

क्यूँकी बस बच्चे ही भविष्य है

कही के भी हों ,यह ही आने वाले कल

और कल का चमकता सूरज है

इन्हें आज बूढा न बनाओ

इन्हें विरासत में

सिर्फ भर पूर पोषण, प्रेम

और सिक्षा दे जाओ

क्यूँकी ऐसा न हुआ तो

कल नहीं लहराएगा कही का भी तिरंगा

और भविष्य अपना

रह जाएगा अधनंगा

अधनंगा

अधनंगा!