Dreams

Monday, November 14, 2016

कभी मुग़ल है कभी मोगली (c) अनुपम ध्यानी



कभी बादशाहों सा दिलदार होता
कभी जोगी सा है मदमस्त
कभी दानी हो जाए मन ये
कभी होता मौका परस्त
जो संस्कारों का चोगा पहने
डंके से बोलें हैं
वो या तो झूठे हैं
या अपने मन को ढंग से ना टटोले हैं
क्यूंकी मन तो एक ओर बहता नही 
होती इसकी फ़ितरत है हरदम दोगली
जो पहचाने इसको वो जानेगा
ये कभी मुग़ल है कभी मोगली

मन की करनी, 
कभी ना डरनी
कभी किसी की चुगली करनी
कभी दया का भाव समाना
कभी प्रेम मे लहू बहाना
कभी , कभी तो प्यार और नफ़रत को
एक पालने में ही सुलाना
कभी क्षमा की छतरी थामे
कभी भाले की नोक चुभाना
कभी करेले सी ज़ुबान को
गुड़ में घोल के ही दिखाना
जो मन के इस मदमस्त अश्व को
थाम लेगा
जिसने इसकी दौड़ रोक ली
वो पूरा कहलाएगा उस दिन
वो ही मुग़ल हो , वही मोगली


एक राह में  चलते चलते
मंज़िल तो मिल जाएगी
राह बदल और सोच बदल तो
हर राह महक जाएगी
कभी हो तिरछी, कभी हो सीधी
कभी हो मिर्ची, कभी हो मीठी
कभी कभी खटास मिलाके
ज़िंदगी मज़े से बीत जाएगी
मन तो अल्हड़ है
मन है चंचल
मन की नदी
कभी सब बहा ले  जाएगी
जिसने इसको वश मे करली
समझो उसने हर जीत भोग ली
मन तो मन है, मन का क्या है
कभी मुग़ल है, कभी मोगली
कभी मुग़ल है, कभी मोगली
कभी मुग़ल है, कभी मोगली