चौराहे पे बैठे
इन अधनंगे बच्चो की
सुनाता आज हूँ कहानी
कितनी जल्दी आ गया बुढापा
और कैसे खो गयी इनकी जवानी
अभागे भी नहीं कहना चाहता
क्यूँकी भाग्य तो है इनका भी
चाहे जितना हो भूखा
जितना नंगा
सच तो है इनका भी
जाने कितने साल इन्होने
यह नंगापन भोग लिया
अमीरों की सेवा करके
न जाने कहाँ अपना बचपन
झोंक दिया
मेहनत की रोटी कही पे
पसीना इनका ऐसे बहता
जैसे हो गन्दा पानी
छत्र नहीं पिता की सर पे
और न माँ की छाती की गर्मी
और ना ही लोरियां
न ही नानी की गोद में कहानी
मासूम दिल को कठोर कर दिया
छेनी हथोडी ईंट गारों ने
इनसे सारे सपने छिन गए
और मूह मोड़ लिया सितारों ने
“समझदार” हो गए है इतने
कि जाने यह सब का मतलब
पता इन्हें है कौन मदारी
और कौन दिखाएगा इनको करतब
सौम्य हथेली होना था जिसको
वो आज बन गया है हथोडा
कोमल दिल को इनके
जीवन के थपेड़ो ने
बड़ी बेरेह्मी से है झाक्झोड़ा
उत्तरदायी कौन है
इन उगते पौधों को बेजान बनाने का
उत्तरदायी कौन है
इनके बचपन को नीलाम कराने का
मैं, आप और हम सब
अपने बच्चो को फूलों सा सींचते
और इनको , झूठन, घूरों सा
इस जीवन चक्की में पीसते
अपने जीवन के पौधे
कैसे हो रहे हैं स्फूर्ति, सेहत से
रंग बिरंगे
जब यह चौराहे पे घूम रहे हैं
अधनंगे?
एक निवाला अपने हाथ से
इन तक पहुंचाना है
इनको भी बस एक बार
हमे गले लगाना है
इनको बचपन के सारे सुखों से
अवगत करना है
साक्षरता और मानवीय ज्ञान
के सागर में इन्हें नहलाना है
क्यूँकी बस बच्चे ही भविष्य है
कही के भी हों ,यह ही आने वाले कल
और कल का चमकता सूरज है
इन्हें आज बूढा न बनाओ
इन्हें विरासत में
सिर्फ भर पूर पोषण, प्रेम
और सिक्षा दे जाओ
क्यूँकी ऐसा न हुआ तो
कल नहीं लहराएगा कही का भी तिरंगा
और भविष्य अपना
रह जाएगा अधनंगा
अधनंगा
अधनंगा!
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