Dreams

Friday, June 18, 2010

आदिती के समीप....Copyright ©

इतने बरस मैं भटकती रही

और न जाने तुम किस ओर जाते रहे

न जाने कैसे हम दोने

अकेले अकेले गुनगुनाते रहे

आज घडी वो आ गयी जब

सुर और ताल का होगा मिलन

एक नयी संरचना का हम

करेंगे अभिवादन

तुम बनोगे मेरे दीप

मैं तुम्हारी आकृति

तुम “समीप”

मैं “आदिती”


हर्षौल्लास का समय तो बहुत देखा

पीडाएं भी बहुत सही

विजय भी पाई मैंने

और पराजय की धारा भी बहुत बही

और आने वाले समय में भी

यह होगा

जब हम पहनेगे एक दुसरे के

साथ का चोगा

एक अंतर बस होगा

मैं तुम्हारी बनूँगी ढाल

और तुम हो जाना मेरी तलवार

तुम मेरे आंसू पोंछना

मैं तुम्हारी एक मुस्कान पे

सजाऊँगी पूजा की थाल

तुम डगमगाओगे तो मैं

हो जाउंगी कृष्ण, तुम्हारा सारथी

मैं शोकाकुल हूँ तो

तुम हो जाना मेरे जीवन का

चमकता सूर्या

इन सात फेरों की गरिमा

इनकी आस्था अमूल्य

मैं हर पल निभाऊंगा

तुम अपना धर्म निभाना

न जाना भूल

छोटी छोटी खुशियों से

हम महका देंगे अपना

और अपनों की बगिया

ऐसे एक होंगे कि

याद करेंगी सारी सदियाँ

क्युंकि तब तुम हो जाओगे मेरे सीप

मैं हो जाउंगी तुम्हारी मोती

तुम ‘समीप”

मैं “आदिती”


आशीर्वाद न भूलें

बड़ों का हम आज

इस संगम पे

प्रेम न भूलें

शुभचिंतकों, मित्रो के

हाथ हमारे

कभी मांगने को न बढें

बस बांटने के लिए ही उठें

सुख , स्वास्थ्य, सद्भावना

प्रेम , निष्टा और

हो भौतिक और मानवीय

समृद्धि

हो जाओ मेरे तुम “समीप”

हो जाऊं मैं तुम्हारी “ आदिती”

समीप

आदिती!


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