अपनी मन मर्जी का मालिक मैं तो
अपने दिल का था ठेकेदार
मसले फूलों की महक में झूमु
था मैं तो अपनी सरकार
जब बदली काया, बदले मौसम
जब हुआ सब खराब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी ....अंग्रेजी शराब
जब बदला चित्त मेरा तो
जब भी मन घबराया था
जब भी दायित्व लेने की बारी थी
तब तब मैं शरमाया था
सब गंगा में धो दें पाप
सब चढाएं बहता आब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी... अंग्रेजी शराब
मदिरालय, प्याले और मधुशाला
बगल में था साकी संभाले
जब बिगड़ा मौसम ,मैंने
दूसरों पे जी भर के दोष डाले
जब कीचड से सनी थी काया
मटमैला रंग हो चले थे कपडे
मैंने डाला त्रुटियों पे , सुनेहरा नकाब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी ....अंग्रेजी शराब
जब मौके खोये मैंने तो कहा
कि आरक्षण रखवादो
जब क्षमता नहीं थी कुछ पाने की
कहा कि प्रसाद चढ़वादों
आत्मविश्वास डगमगाया जब और
हिम्मत नहीं थी कि पूरे कर सकूँ ख्वाब
मैंने दोष डाल दिया मदिरा पे
सब गलती थी ....अंग्रेजी शराब
जब जब हम में कुछ काला है
और हम पहचान जाते
तब तब हम सबसे पहले
उसको सबसे हैं छुपाते
सब से छुप गया फिर भी
रोज़ तो शीशा देखोगे?
अपने मटमैले शरीर को नकारो
पर अपनी काली आत्मा तो सेकोगे?
तो मेरी अंग्रेजी शराब जैसे
न तुम किसी पर करना समय खराब
नहीं तो बोतल में बंद रह जायेंगे ख्वाब
और तुम बन जाओगे किसी और की वो
अंग्रेजी शराब
अंग्रेजी शराब
अंग्रेजी शराब!
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