दिमाग़ को चुनाव की अनुमति दी
दिल ने क्या बिगाड़ा ईश्वर
चुनौती का चयन करने वालों ने भी
दिल से ही जीता हर स्वयंवर
दिमाग़ को चुनने का ग़ुरूर है
दिल को बस बह जाने का फ़ितूर
मय बनाने वाले ये नहीं समझे मगर
नशे के लिए तो दिल ही है मशहूर
ज़हन से मंज़िल बनती है
पर हौसले दिल दिया करते हैं
इश्क़ में दिमाग़ की नहीं चलती
वहाँ फ़ैसले दिल किया करते हैं
रणनीति सेनापति बनाते भले हैं
पर चुनौती शूरवीर दिया करते हैं
भूगोल राजा के हाथ लग जाते हैं
इतिहास स्वर्ण अक्षरों से अंकित, सेनानी किया करते हैं
समारोह बुद्धिजीवियों का माना लो अभी
सदियों तक तो मोहब्बतें हर याद रहेंगी
समाधियों के फूल मुरझा जाएँगे
मज़ारों की अगरबत्तियाँ ही याद रहेंगी
चुनाव, संदेह को जन्म देता
दिल बहे है एक डगर
दिमाग़ बाँध बनाता नदी पर
दिल की धारा चट्टानें चीरे है मगर
दिमाग़ को चुनाव की अनुमति दी
दिल ने क्या बिगाड़ा ईश्वर
चुनौती का चयन करने वालों ने भी
दिल से ही जीता हर स्वयंवर
~© अनुपम ध्यानी
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