पुरुषार्थ की परिभाषा
नारित्व के दायरे
किसने बनाए रे?
इश्वर की मूरत
दानव की सूरत पे
मुखौटे किसने
चढ़ाए रे?
पाप की ज्वाला
धधके क्यूँ है
पुण्य का प्याला
हमेशा क्यूँ
छलकाए रे?
हर चीज़ को बाँटना क्यूँ है
कोई बतलाए रे?
सोच में तेरे
छेद है
इस बात का खुदा को भी खेद है
पर खुदा भी प्यारे
तूने ही बनाए रे.
सिद्धों में
गिद्धों में, अंतर
इच्छा भर का है
फिर सिद्धों को ही क्यूँ
प्रसिद्ध बनाए रे
ताकि हर ओर
लार टपकाते, माँस नोचते
गिद्ध मंडराएँ रे?
बुद्धि और करुणा में
शौर्य और अहिंसा में
किसे चुनें हम?
हरदम चुनाव को चुनौती ही
क्यूँ बनाए रे?
अंतर, भेद, चुनाव
के ही हरदम
क्यूँ भाले चलाए रे
मानव ही जब
सब बनाता
खुदा को ही
ढाल क्यूँ बनाए रे?
सब तो तूने राख किया है
फूँक दे सब जो
सामने तेरे आए रे
जब उत्तर ढूँढना ही नही है
फिर प्रश्न को भी
आग क्यूँ ना लगाए रे
मानव तू बड़ा चतुर है
सब को खेल बनाए रे.
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