जब जब युद्ध की भाषा बोलनी हो
बुद्ध हो जाती है दिल्ली
चुप्पी चाहिए हो जब सरकार से
तब प्रबुद्ध हो जाती है दिल्ली
जब स्थिरता चाहिए होती है
सुध बुध खो जाती है दिल्ली
जब जब युद्ध की भाषा बोलनी हो
बुद्ध हो जाती है दिल्ली
आधों से झुकती, पूरी दिल्ली
प्यादों से फूंकती, पूरी दिल्ली
कभी शौर्य होता था सीने में यहाँ
बिना दिल की, अब अधूरी दिल्ली
शहन्शाहों के तख्त सी
सिंहों सी दहाड़ती दिल्ली
ना जाने दिल इसका कहाँ खो गया
दुबक कर, सहमी, भीगी सी बिल्ली
दिल्ली
इमारतों से क्या होगा
धुएँ से ढ़क़ी हुई है काया
देश भर में भेद जन्मा इसने
खुद गठबंधन ही बस कमाया
सीमाओं पे बहे रक्त से
जेबें भरती है दिल्ली
लहू की गर्मी होती थी कभी इसमे
अब बस बर्फ की सिल्ली है दिल्ली
जब जब युद्द की भाषा बोलनी हो
बुद्ध हो जाती है दिल्ली
~ अनुपम ध्यानी
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