मैं अपना दिल किराए पर चढ़ाना चाहता हूँ
किराए एकत्रित यादों से हुआ करेगा
यादें, जो तुम बनाओगे औरों के संग
मेरे दिल के उस कमरे में रख देना
जहाँ मेरी अपनी धूल चढ़ी यादों का किताब घर है
जब लौटाओ मेरे दिल को
तो याद रहे, हू-ब-हू वैसा ही लौटना जैसे दिया था
ना कोई कील का निशान, ना पुताई की परत
ना खिड़कियों के ही पल्ले खराब हों
ना दरवाज़ों की खूँटि खराब
बड़ी मेहनत से घर बनाया है
संभाल के रखिएगा जनाब
मेहमान आएँ तो शोर कम हो
आयें कुछ देर , बैठें फिर जाएं
कहीं मेरी यादों की कोठरी
के साँप, उन्हे डस ना जाएं
मैं अपना दिल किराए पर चढ़ाना चाहता हूँ
क्यूँकि, आजकल दिल होते कहाँ हैं लोगों के पास
जब हमने बनाया था दिल अपना घरौंदे सा
तब इतनी आबादी कहाँ थी
दिल होते थे सब के पास
दिल है, चाहे थोड़ा खंडहर सा
छत हो जाएगी तुम्हारी
यादें बटॉरोगे
और खर्च हमारा दिल होगा
1 comment:
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
Post a Comment