Dreams

Tuesday, July 28, 2015

राख बनूँ, धूल नहीं ! (c) Copyright




राख बनूँ,
धूल नहीं
लंगर की डोर बनूँ,
फंदे की झूल नहीं
विपरीत बहुँ,
अनुकूल नहीं
राख बनूँ,
धूल नहीं

तीखा जीवित काँटा बनूँ
शवों पर निर्जीव फूल नहीं
कोरा पन्ना बनूँ
इतिहास की भूल नहीं
इंक़लाब बनूँ
मक़बूल नहीं
राख बनूँ
धूल नहीं

वीरगति का लहु बनूँ
कायरता का त्रिशूल नहीं
चुनाव का इनकार बनूँ
दबाव का क़ुबूल नहीं
चेतना का बीज बनूँ
विवेकहीन मूल नहीं
राख बनूँ मैं
धूल नहीं
राख बनूँ मैं
धूल नहीं

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