बात नहीं है जूतों की
बात तो है बस कदमों की
रेत पे अंकित पदचिन्हों की
समय के साथ मुक़दमों की
कीचड़ में भी
साख जमाएं देखो
कमल कैसे मुस्काये
छीटें उसे भिगाना चाहें
पर वो गीला भी ना हो पाए
पुष्पराज की स्थिरता उसकी शोभा
शबनम की बूँदें केवल अलंकार
ना बदले उसकी काया
ना बदले उसका आकार
बात नहीं है शबनम की
बात तो है बस पदमों की
रेत पे अंकित पदचिन्हों की
समय के साथ मुक़दमों की
तूफ़ानों से लड़ती कश्ति
डगमग डगमग थर्राये
माझी संकल्पी हो तो
सागर का सीना भी चिर जाए
सागर अपनी लहरों से
भले उसे डरा जाए
पर जिस नाव का चप्पू
विश्वास भरा हो
लहरे वो हरा जाए
बात नहीं है
तूफ़ानों से मिलते इन सदमों की
केवल रेत पे अंकित पदचिन्हों की
समय के साथ मुक़दमों की
समय के साथ मुक़दमों की
2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, यारों, दोस्ती बड़ी ही हसीन है - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अति सुंदर !!
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