दहाड़!
ऐसे दहाड़ कि थर्राए
ये धरती और यह गगन,
ऐसे, कि घबराये
दुश्मन का भी मन!
निर्भय होके जा
तू उस चोटी पे,
और छीन ले ये आसमा
और धरती उस ईश से ।
सुबह की ओस की तरह पाक
और उजली धूप की तरह नेक
सा हो तेरा विश्वास,
न आंधी न तूफ़ान से
कम्प्कपये तेरी यह जीतने की आस.
बोल जितना बोलने दे उन आवाज़ों को
तू अपने मौन से ही हिला दे उनका प्रयास।
न भूल
तू है धरती पे पैदा हुआ चिंघाड़ने को,
अपनी गूँज से हर मंज़र को पाने को.
अकेला ही चल पर चला तू ज़माने को
मिटा दे तू हार के हर एक बहाने को।
पिघलने दे मोम को, शम्मा को तू जलने दे,
चल अकेला ही तूफानों में , सब को झुण्ड में तू चलने दे।
साहिल के सुकून पे होने दे खुश उन कमजोरों को,
तू जाके तूफानों से कश्ती निकाल।
इरादों कि चट्टान पे टूटने दे उन लहरों को,
तू अपने विश्वास कि नाव हरदम संभाल।
भीग जाने दे नसों को अपनी
उम्मीद कि आग में,
डूब जाने दे राघो गो
इरादों कि भाप में,
बढ़ा मंजिल कि और
अपने कदम न लडखडाने दे,
है फासला जितना भी
तू आगे बढ़ा चल ज़माने में।
शिखर पेजाके के ही तू अब दम भर
और चिल्ला दे अपने अन्दर का गुबार,
दिखा दे सबको कितनी ऊंची है तेरी उड़ान
और कितनी भारी है तेरी दहाड़।
ऐसे दहाड़ कि मिमिया पड़े
जंगल का राजकुमार
ऐसे दहाड़, कि आंधी भी अपना
रुख मोड़ ले और
ऐसे कि सब पर भरी पड़े तेरा प्रहार।
ऐसे दहाड़
ऐसे दहाड़, ऐसे दहाड़!
No comments:
Post a Comment