जो दबते रहे उन्हे दबाया गया
जो रोते रहे उन्हे रुलाया गया
हुक्मरानो के चाबुक के डर से दुबके
वो डरते रहे जिन्हे डराया गया
जिसने ना दबने की जुर्रत की, उन्हे भी दबाया गया
जिनका सर अब ना झुकता था, उनका सर कलम करवाया गया
जिनके आँसू अब खून होने लगे,
उनका जीवन उसी खून मे डुबॉया गया
पर जो जुर्रत करते हैं
वो तख्त पलटते हैं
जो जुर्रत करते हैं
वो हवा का रुख़ बदलते हैं
सहनशीलता अलग मार्ग है
पर जो जुर्रत करते हैं वो ही
बुद्ध बनते हैं
कर तूफान के मूह पे दहाड़ने की जुर्रत
कर बवंडर को उधेड़ने की जुर्रत
कर बादशाहों को ललकारने की जुर्रत
कर भाग्या को भयभीत करने की जुर्रत
कर नये रास्ते अपनाने की जुर्रत
कर समय को ढालने की जुर्रत
कर आकाश मे कील ठोकने की जुर्रत
कर हवा के महल बनाने की जुर्रत
कर सागर को चीरने की जुर्रत
कर आग से नहाने की जुर्रत
कर नियम तोड़ने की जुर्रत
नये नियम बनाने की जुर्रत
कर जुर्रत
तेरी जुर्रत किसी और का मार्ग बनेगा इक दिन
तेरी जुर्रत इतिहास रचेगा एक दिन
जुर्रत नही की तो तू भी
गुमनामी से नही बचेगा एक दिन.
तो कर जुर्रत
कर जुर्रत
कर जुर्रत.
No comments:
Post a Comment