Dreams

Tuesday, July 16, 2013

कवि कौआ है Copyright (C)

कवि कौआ है
काला, भूखा
कुरूप,
जिज्ञासू
जुझारू
जिसे सराहा नही जाता
काली काया से परेशान
जग के कोने कोने मे विधयमान
कवि कौआ है

कवि कौआ है
जिसकी चेष्टा के गुण
पर श्लोक बने
पर जिसकी हरदम
उपेक्षा हुई
काला होना श्राप बन गया
हमेशा निंदा, हमेशा समीक्षा हुई
कवि कौआ है

कवि कौआ है
ना बाज़ की तरह कुटिल
ना बुलबुल की तरह भोला
कोकिला सा सुर नही
बस काले माँस का झोला
परंतु
देखा होगा यदि कौए को ध्यान से
कौआ तुम्हारे अंदर की कालिख
का दर्पण बन जाता है
टकटकी बाँधे
दृष्टि नही हटाता है
वो तुम्हारा चेहरा पढ़ रहा है
कई कहानियाँ गढ़ रहा है
आखेटक को आता देख
तुम्हारी पीठ से उड़ जाएगा
"जान बचा ले भाग" का
संकेत  दे जाएगा
परंतु जब काल की गति
तुम्हारे अनुकूल चलती है
तुम्हारी पीठ पे बैठे काक
की चोंच तुम्हे खलती है
क्यूंकी
कौआ काला है
कुरूप है

कवि निंदा करे तो
काला है
प्रेम गीत गढ़े तो
मतवाला है
उसका काला होना उसका अभिशाप है
और काला होना तुम्हारे लिए पाप है
खून चूस्ते बगुलों को तुम
हंस बताओगे
प्राण बचाते कौए को तुम
दूर कर उड़ाओगे
"उसकी उपस्थिति अभिशप्त है"
यह अभागा हव्वा है
क्यूंकी राह दिखता,
लौ जलाता, कवि
कौआ है!

Wednesday, July 10, 2013

संदेह ! Copyright ©.

प्रश्न पूछने वाले हरदम ठुकराए गये
बेड़ियों मे जकड़ कर, दीवारों मे चीनवाए गये
कभी सत्ताधारियों कभी धर्म के ठेकेदारों ने कुचला
कभी मात्र प्रश्न चिन्ह लगाने पर आहुति बनाए गये
पर जब जब किया संदेह किसी ने हर लिखी बात पर
पुश्तैनी इमारतों, इतिहास के घात पर
तब तब ही नये भविश्य का निर्माण हुआ
पुरानी नीवे तोड़ना ही स्वच्छंदता का प्रमाण हुआ

हर कही बात को मान लिया जिन्होने
उनका ही तथाकथित विकास हुआ
जिसने प्रश्न किया संदेह से
हर सभा से उनका निकास हुआ
जानने से पहले मानना जिनके लिए अभ्यास था
भक्त बन जाना ही उनके लिए विकास था
जो बिना जाने , मानने के आदि ना थे
जीवन जीना भी उनके लिए कठिन प्रयास था

संदेह तू यदि करता है
तू निर्भीक है, नही किसी से डरता है
मापदंड की परिभाषा द्रवल होती है
जो इसे फैला सके, उनकी ही विजय प्रबल होती है
ना मान हर बात , स्वयं सत्य की राह तय कर
हर प्रचारक, गुरु की हर बात ना मान ले रह रह कर
विवेक से कर हर फ़ैसला, मान लेना ना आदत बना
कुछ नया सोचना, करना चाहता है तो
पहले प्रचलित प्रथाओ, मानसिकताओं पर
संदेह कर
संदेह कर
संदेह कर