सिंह की दहाड़ तू बन जा,
मेमने सा मासूम , दुर्बल,भयभीत न बन
राष्ट्र गान की गरिमा बन जा, पर कोमल प्रेम गीत न बन
रण भूमि का शव तू बन जा, पर रंग मंच की प्रीत न बन
जिज्ञासा की हार तू बन जा, पर रूढ़िवादी जीत न बन
शौर्य से कटा शीश तू बन जा, पर कायर की तू पीठ न बन
दिए की चमकती लौ सा जल जा, पर निर्भर पतंगा-कीट न बन
कर्मठ बन जा, जुझारू बन ले, पर हट-धर्मी तू ढीठ न बन
ज्ञानार्जन कर, चिंतन भी कर, पर स्व-घोषित, ज्ञान-पीठ न बन
बैरागी पर लगी भभूत तू बन जा, पर ढोंगी के माथे का चंदन न बन
खुले पंखों की उड़ान तू बन जा, पर धरती का बंधन न बन
भविष्य निर्माण की ईंट तू बन जा, पर भूत का खंडन न बन
दुस्साहस की गर्जन बन जा, पर असहाय हृदय का स्पंदन न बन
सिंह की दहाड़ तू बन जा,
मेमने सा मासूम , दुर्बल,भयभीत न बन..
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