और अब इन पंखों में वो जान कहाँ
कि ये बादल छूँ आयें
कभी फलक पर इंद्रधनुष सजते थे
अब गिद्ध मंडराते हैं
हवायें ज़हरीली हैं
बादल तेज़ाब बरसाते हैं
एक नया आसमाँ चाहिए अब
नई उड़ान के लिए
जिनके साथ उड़ान भरी थी कभी
वो हमराही भी उड़ चले हैं
नये दाने के लिए
हम उड़ना भी चाहें तो
जाल बिछाए तयार हैं बादल
शिकार के लिए
एक नया आसमाँ चाहिए अब,
एक नई उड़ान के लिए
नीले आकाश, पीले हो चले
पीले पत्ते मौत से नीले हो चले
एक इंद्रधनुष था जो जीवट लाता था
उसके रंग भी अब फीके हो चले
एक नया आसमाँ चाहिए अब
एक नई उड़ान के लिए
क्या मैं फिर से उड़ सॅकुंगा ?
या मेरे पंख झड़ जाएँगे
या मेरे पंखों के फैलाव
उड़ान की ताक़त बटोर पायेंगे?
या आसमाँ की ओर ताकते ताकते
प्राण धीमे से निकल जाएँगे?
या
एक नया आसमाँ चाहिए अब
एक नई उड़ान के लिए ?
हाँ
एक नया आसमान चाहिए अब
एक नई उड़ान के लिए
1 comment:
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई
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