Dreams

Tuesday, June 24, 2014

प्रज्ज्वलित Copyright(C)




प्रज्ज्वलित है लौ अभी भीतर

लहु भी अभी सुर्ख लाल है

भाले चुभते भी है मगर

छलनी ना अभी भीतर की ढाल है



सीना लहु से गीला है और

पीड़ा से तू बहाल है

लड़खड़ा रहे हैं पैर मगर

वीरों सी तेरी चाल है



देख काँपती रणभूमि के

चेहरे पे कितने सवाल हैं

तू उठके ध्वज लहराएगा या

या वीरगति को प्राप्त तेरी छाल है



अश्व तेरा हिनहीना रहा देख

घिसी नही उसकी भी नाल है

उठ सेनानी, कवच संभाल

लहरानी विजयी मशाल है



घुटनो के बल रेंगेगा तो

भुला देगा इतिहास तुझे

खड़ा उठ खडग संभाल

देगा जग शाबाश तुझे



प्यासी जीभ है

प्यासी रूह

प्यासी तेरी खाल है

थोड़ा सा बस , थोड़ा और

आगे प्यास बुझाता देवताल है



संताने तेरी युग युग तक

तेरे गीत गुनगुनाएंगी

माला के हर मोती में

तेरी पूजा समा जाएगी

डुबो दे उंगली लहु में अपनी

तिलक लगा माथे पर नहीं तो

माथा नही वो तो केवल

लटका मृत कपाल है

उठ सेनानी, कवच संभाल

लहरानी विजयी मशाल है

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