Thursday, January 12, 2012
तथास्तु ! Copyright ©
स्वप्न पूरे करने को अग्रसर हो तुम तो
कठिन राहों पे चलने को हो उत्सुक
हो शिखर पे स्व-ध्वज लहराने की इच्छा
तो रोकेगा कौनसा मानुष कौन सी वस्तु
यह इच्छा है तो
ब्रह्माण्ड बोलेगा : तथास्तु, तथास्तु !
जो शिखर पे नहीं पहुँचता,
जो सागर पार नहीं कर पाता
जो स्व के उत्थान को नहीं है आतुर
वो इसलिए नहीं क्युंकि उसे सही परिस्थिति न मिली
वो इसलिए नहीं क्युंकि उसे मार्गदर्शन न मिला
वो केवल इसीलिए क्युंकि उसने स्वप्न न देखे
वो केवल इसलिए क्युंकि उसने जोड़ा हर राह में "किन्तु"
अगर इच्छा होती तो
ब्रह्माण्ड बोलता : तथास्तु, तथास्तु !
ब्रह्माण्ड खुली बाहों से आलिंगन करने को तैयार है
क्या तुम्हारे पास इच्छाओं और एकाग्र की तलवार है?
ब्रह्माण्ड स्वप्न साकार करने का वरदान देना चाहता है
क्या तुम्हारे पास स्वप्न देखने की धार है?
यदि है और है ऊंची उड़ान भरने की इच्छा
तो पंख नहीं , हौसला हो स्वेच्छा
और हो जाओ तुम भी इस अथाह आकाश के स्वामि
इस जल के बादशाह
न कोई मित्र, न शत्रु
केवल मांगो ब्रह्माण्ड से
वो बोलेगा....
तथास्तु !
तथास्तु !
तथास्तु !
Monday, January 9, 2012
आज के लिए ! Copyright ©
जब पुरूस्कार उठाता हूँ तो हाथ कांपते हैं
जब मुकुट पहनता हूँ तो भ्रिकुटी तन जाती है
जब सिंघासन पे होता विराजमान तो काया घबराती है
पर क्या करूँ, इंतज़ार के बाद फल मिले तो ऐसा ही होता है
जब सूखे होंट,पानी पाते हैं, तो कांपते हैं
जब घाव मरहम से लीपे जाते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं
जब पीड़ा हरता ईश, तो मन ख़ुशी से रोता है
पर क्या करूँ, ढेरों साल की प्यास जब बुझती है तो ऐसा ही होता है
जब एकदम उजाला हो जाता है,घनघोर अँधेरे के बाद
तो आँखें चौंधिया जाती हैं
जब सूखी धरती पे बरखा की बूँद गिरती है तो
धरती फिर भी तिलमिलाती है
पर क्या करे, प्रतीक्षा का फल ऐसा ही मीठा होता है
तो तेरे हाथ यदि कम्प्कपाएं, तेरे होंट यदि थर्राएं
तेरे घावों पे मरहम लग जाए, तेरी सूखी काया भीग जाए
तो याद रखना, तू जीता है
तो याद रखना ,तू विजयता है
जितने पहाड़ तूने चढ़े
वो सब तेरे कदमो के नीचे हैं
जितने सागर तूने पार किये
वो सब अब फीके हैं
मत घबरा , यदि तुझे अन्धकार में कुछ दीखता नहीं
मत शरमा, यदि तुझे नग्न होना पड़ा
मत कर सर नीचा यदि पग दो पग डगमगाया
इस से ही तो तेरा भाग्य है जगमगाया
तू सूखी शाख था कभी, पर केवल अमृत के लिए
तू टूटी डाल था कभी, पर केवल बरगद होने के लिए
तू घायल था कभी, एक दिन पूरे चैन से सोने के लिए
तू डरा हुआ था, केवल भय को जीतने के लिए
तो चला था कठिन रास्तों से, केवल मंजिल के लिए
तो चल,
तो हो घायल,
तो हो भयभीत
तो हार
तो बढा कदम
जीतने के लिए
तख़्त के लिए
ताज के लिए
शिखर की छोटी के लिए
आज के लिए
Wednesday, January 4, 2012
इस बरस Copyright ©
इस बरस नया गांडीव उठा चुका है समय
इस बरस नए तीर हैं कमान में
इस बरस उमीदें, रूप लेंगी
इस बरस केवल विजय है जुबां पे
इस बरस आकर लेंगी इच्छाएं
इस बरस निराकार होंगी हार
इस बरस तम भी जगमगायेगा
इस बरस चौगुनी होगी किरणों की धार
इस बरस चढ़ाव होंगे अधिक , उतार की अपेक्षा
इस बरस मूरत बनेगी स्वेच्छा
इस बरस शब्द पत्थर बनेंगे
इस बरस सोच होगी दीक्षा
आलिंगन का हार डालें , गले लगायें नए साल को
बाहें फैलाए, उत्तर दें हर सवाल को
भ्रिकुटी तानें और सीने में स्पंदन करें उजागर
और भर दें भविष्य का सागर
भर दें झोली उनकी जिन्हें केवल माँगना आता है
पीठ थपथपाएं उनकी जिन्हें केवल जीतना आता है
सीना ठोकें उन वीरों का जो निडर हैं
शाबाशी दें उनको जिन्हें जीना आता है
निर्माण हो नवीन पुलों का
युवा और वृद्धों का
नारी और पुरुष का
नव युवक और युग पुरुष का
चमकदार हो जिव्हा से निकला हर शब्द
हर वाक्य में ज्ञान का सागर हो
हर पुकार ईश की ओर नमन हो
हर कर्म मौलिकता का चरम हो
तो आओ इस बरस भरें सब में उम्मीद
हो जायें पांडवों का नीढ़
कम हों पर हों सशक्त
हो जाएँ केवल समय के भक्त
हो जाएँ केवल समय के भक्त
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