Dreams

Wednesday, January 4, 2012

इस बरस Copyright ©


इस बरस नया गांडीव उठा चुका है समय
इस बरस नए तीर हैं कमान में
इस बरस उमीदें, रूप लेंगी
इस बरस केवल विजय है जुबां पे




इस बरस आकर लेंगी इच्छाएं
इस बरस निराकार होंगी हार
इस बरस तम भी जगमगायेगा
इस बरस चौगुनी होगी किरणों की धार


इस बरस चढ़ाव होंगे अधिक , उतार की अपेक्षा
इस बरस मूरत बनेगी स्वेच्छा
इस बरस शब्द पत्थर बनेंगे
इस बरस सोच होगी दीक्षा


आलिंगन का हार डालें , गले लगायें नए साल को
बाहें फैलाए, उत्तर दें हर सवाल को
भ्रिकुटी तानें और सीने में स्पंदन करें उजागर
और भर दें भविष्य का सागर


भर दें झोली उनकी जिन्हें केवल माँगना आता है
पीठ थपथपाएं उनकी जिन्हें केवल जीतना आता है
सीना ठोकें उन वीरों का जो निडर हैं
शाबाशी दें उनको जिन्हें जीना आता है


निर्माण हो नवीन पुलों का
युवा और वृद्धों का
नारी और पुरुष का
नव युवक और युग पुरुष का


चमकदार हो जिव्हा से निकला हर शब्द
हर वाक्य में ज्ञान का सागर हो
हर पुकार ईश की ओर नमन हो
हर कर्म मौलिकता का चरम हो


तो आओ इस बरस भरें सब में उम्मीद
हो जायें पांडवों का नीढ़
कम हों पर हों सशक्त
हो जाएँ केवल समय के भक्त
हो जाएँ केवल समय के भक्त