Monday, January 9, 2012
आज के लिए ! Copyright ©
जब पुरूस्कार उठाता हूँ तो हाथ कांपते हैं
जब मुकुट पहनता हूँ तो भ्रिकुटी तन जाती है
जब सिंघासन पे होता विराजमान तो काया घबराती है
पर क्या करूँ, इंतज़ार के बाद फल मिले तो ऐसा ही होता है
जब सूखे होंट,पानी पाते हैं, तो कांपते हैं
जब घाव मरहम से लीपे जाते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं
जब पीड़ा हरता ईश, तो मन ख़ुशी से रोता है
पर क्या करूँ, ढेरों साल की प्यास जब बुझती है तो ऐसा ही होता है
जब एकदम उजाला हो जाता है,घनघोर अँधेरे के बाद
तो आँखें चौंधिया जाती हैं
जब सूखी धरती पे बरखा की बूँद गिरती है तो
धरती फिर भी तिलमिलाती है
पर क्या करे, प्रतीक्षा का फल ऐसा ही मीठा होता है
तो तेरे हाथ यदि कम्प्कपाएं, तेरे होंट यदि थर्राएं
तेरे घावों पे मरहम लग जाए, तेरी सूखी काया भीग जाए
तो याद रखना, तू जीता है
तो याद रखना ,तू विजयता है
जितने पहाड़ तूने चढ़े
वो सब तेरे कदमो के नीचे हैं
जितने सागर तूने पार किये
वो सब अब फीके हैं
मत घबरा , यदि तुझे अन्धकार में कुछ दीखता नहीं
मत शरमा, यदि तुझे नग्न होना पड़ा
मत कर सर नीचा यदि पग दो पग डगमगाया
इस से ही तो तेरा भाग्य है जगमगाया
तू सूखी शाख था कभी, पर केवल अमृत के लिए
तू टूटी डाल था कभी, पर केवल बरगद होने के लिए
तू घायल था कभी, एक दिन पूरे चैन से सोने के लिए
तू डरा हुआ था, केवल भय को जीतने के लिए
तो चला था कठिन रास्तों से, केवल मंजिल के लिए
तो चल,
तो हो घायल,
तो हो भयभीत
तो हार
तो बढा कदम
जीतने के लिए
तख़्त के लिए
ताज के लिए
शिखर की छोटी के लिए
आज के लिए
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