Dreams

Monday, October 29, 2012

रिक्त स्थान Copyright©



रिक्त स्थान

मेरे जीवन की पंक्ति में
जो रिक्त स्थान हैं
उसे मैं भरने निकला था
आश्वमेध का प्रचम लहराया मैने
समय के रुख़ को मैने बदला था
कभी मेरे क्रोध से
सूरज तक भी पिघला था
शिखर चढ़े मैने
चोटी के अभिमान को मैने तोड़ा था
धाराओं के रुख़ को भी मैने हाथों से अपने मोड़ा था
मगर वो रिक्त स्थान जीवन का, अब भी भरा नही था
ना जाने किसके लिए मैने उसे अब तक छोड़ा था


फिर त्याग सभी को मैने मन के अंदर भी झाँका
ईश को पुकार लगाई , आकाश को भी ताका
रिक्त फिर भी था मन, रिक्त थी अब भी जीवन की पंक्तियाँ
लाख जतन किए मैं भर ना पाईं कोई शक्तियाँ
फिर एक दिन स्वप्न मे तेरी पायल की झंकार सुनी
तेरे केशों के साए मे मैने मीरा की पुकार सुनी

इतने करतब किए मैने , ना जाने कितनी पीर सही
रिक्त स्थान को कैसे भरना है, मुझे था ग्यात नही
जब तुम गयी जीवन से तो मुझको मालूम हुआ
तुम जीवन अमृत थी पर मैं औरों मे मशगूल हुआ
आदि से प्रेम नही, प्रेम से आदि है
बाकी सब व्यर्थ बाकी सब 'इत्यादि ' है

आ जाओ मेरे जीवन मे फिर, मैं रिक्त स्थान भरना चाहता हूँ
तुम्हे पूजने के सिवा, बाकी सब को 'अतिरिक्त' करना चाहता हूँ

Tuesday, October 16, 2012

हिम्मत की ढाल Copyright©


आक्रमण का ना भाला दे चाहे
पर हिम्मत की तू ढाल दे
मयूर नृत्य की ना दे क्षमता
पर मृग जैसी तू चाल दे
हे परमेश्वर सब प्रश्नों के उत्तर ना हों
पर तू सही मुझे सवाल दे
आक्रमण का ना भाला दे चाहे
पर हिम्मत की तू ढाल दे

गुमनामी के सौ बरस नही

जगमगाते साल दो साल दे
सबके दिल मे बस जाऊं
ऐसे शब्दों को ताल दे
ना फ़र्क पड़े मुझे निंदा से
गैंडे जैसी तू खाल दे
आक्रमण का ना भाला दे चाहे
पर हिम्मत की तू ढाल दे

पहुँचू मंज़िल पे चाहे धीरे ही
चाहे कछुए की चाल दे
थकने ना पाएं कदम मेरे
ऐसा कुछ कमाल दे
सब को वश मे करलूँ मैं
ऐसा माया जाल दे
आक्रमण का ना भाला दे चाहे
पर हिम्मत की तू ढाल दे

आक्रमण का ना भाला दे चाहे
पर हिम्मत की तू ढाल दे

Wednesday, October 3, 2012

अतुल्य Copyright©



वो तुल जाता इस तरज़ू में
जो तुलने के लिए जीता है
जग के मापदंडों मे जो
जलने के लिए जीता है

तोल मोल के बोलता जो
वो मोल से तोला जाए
जो मन की बोले, खरी बोले
निर्भेक स्वर उसका अतुल्य कहलाए

महापुरुषों से तुलने को जो हो उत्सुक
पलड़ा भारी अपना करने का जो हो इच्छुक
ना महापुरुषों मे गणना होगी उसकी
ना ही भार सह पाएगा
जो अपनी राह स्वयं बनाए
वो ही अतुल्य कहलाएगा
महापुरुष अपने काल मे कुछ
ऐसा ही कर जाते हैं
जिसकी तुलना काल के पलड़े
अनुमान ना लगा पाते हैं
भय हार का ना होता इनको
ना लालसा होती पुरूस्कार की
ना भारी होने का मान इनको
ना ज़रूरत आभार की
दर्शन इनका भिन्न सभी से
होता इनमे रहस्यमयी ज्ञान अमूल्य
तुलने तोलने को यह रहने देते
हरदम रहते यह अतुल्य

समाज की देन है "तुलना"
ईश का नही वरदान
ईश तो चाहे केवल हममे
उस जैसा प्रथिमिंब महान
तो ना तुलना कर तू मानुष से
ना लगा अपने जीवन का मूल्य
राह पकड़ तू अपनी ,और
बना स्वयं को तू अमूल्य
बना स्वयं को तू अमूल्य