Dreams

Tuesday, December 11, 2012

गोली की रफ़्तार से Copyright©



मैं संभल संभल के पग रखता था, डरता था मैं हार से
कंधे झुक गये थे मेरे, जग की अनगिनत उम्मीदों के भार से
रेंग रेंग के जीता था मैं , फूक फूक के बढ़ता था
पर जीवन निकल रहा था मेरा गोली की रफ़्तार से

धैर्य धरा मैने और जला भी मैं समय की अंगार से
घबरा भी गया मैं इस संसार के विशाल आकार से
कविता रूप  जीवन माँगा था मैने विष्णु के अवतार से
पर जीवन दिया उसने जिसे चलना था गोली की रफ़्तार से

बाल समय बीत गया, अनुशासन की मार से
यौवन वृद्धा गया हो जैसे पैसे की पुकार से
गिरता फिर संभलता, फिर गिरता मैं आगे ही बढ़ा था थोड़ा
पर जीवन गतिमय हुआ और पुनः निकल गया गोली की रफ़्तार से

अब नही जाने दूँगा इसे, रंग जाऊँगा इसे अपने विचार से
कुछ शब्द पुष्प खिलाऊँगा अपनी कविता के उच्चार से
इतिहास रचना होगा इन्ही कुछ पलों में मुझे
नही तो जीवन निकल जाएगा फिर गोली की रफ़्तार से

कुछ दिलों में छाप छोड़ूँगा, उद्धार से
किसी को सीने से लगाऊँगा, प्यार से
दंद्वत हो जाऊँगा, किसी के चरणों में ..आभार से
कुछ बिछड़ों को बुला लूँगा अपनी कविता की पुकार से
पल पल में जीवन है , जी लूँगा उसे जी भरके
डरूँगा नही जीवन की ललकार से
जो कहता है हर दम....कुछ कर नही तो
निकल जाऊँगा मैं..गोली की रफ़्तार से

2 comments:

Subhash Chandra Lakhera said...

I appreciate it from the core of my heart !

रश्मि प्रभा... said...

http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_7204.html