Dreams

Monday, August 24, 2015

गुलाबी (c) Copyright

 
 
 
 
कर्तव्य और धर्म
प्रेम और कर्म
के मध्य एक
गुलाबी और नर्म
हिस्सा है
जिसका यह किस्सा है
जिसकी काया नहीं
जिसकी छाया भी नहीं
जो मूलाधार और सहस्रार
के बीच कहीं खो जाता है
जिसे कोई छू नहीं पाता है
जो तुम्हारे अस्तित्व का
निचोड़ है
तुम्हारी हँसी भी है
पीड़ा की मरोड़ है
जो कर्म और धर्म के
बोझ से परे है
जो ना सुन्न होता है
ना मृत्यु से डरे है
जो मर्यादा नहीं जानता
शाही चाल चलता है
जो प्यादा नहीं जानता
वो गुलाबी पंखुड़ी
हृदय नहीं है
सूर्योदय नही है
ना घनी रात है
ना कायनात है
वो बस है.
वो गुलाबी धधकता अंगारा
ज्वाला है
जिसे प्रत्येक प्राणी ने भीतर
संभाला है
वो विवेक नहीं है
विजयी अभिषेक नहीं है
वो प्राण है
और वो प्राण
तुम्हारे लिए जीवित है
आ जाओ.. मिल जायें
संग खिल जाएं

1 comment:

अनुपमा पाठक said...

उस शाश्वत अंश को प्रणाम!