Dreams

Tuesday, March 6, 2012

चौंसठ घर ! Copyright©


चौंसठ खानों में देखो तो
कैसे बिसात बिछी है
हर एक मोहरे की अपनी किस्मत
कैसी रेखा खिंची है


पैदल सीधा चलता
सीधा ही चल पायेगा
कभी दुश्मन रोकेगा तो
कभी न्योछावर हो जाएगा




बलशाली हाथी भी सीधा ही
चल पाता है पर कितना
जतन कर ले कोई
दुश्मन मार गिराता है
सीधा सीधा चल चल के
कई खाने पार किये
कभी बलि चढ़ाया गया
कभी दुश्मन के
खाने सारे चार किये


मदमस्त ऊँट की चाल यहाँ पे
टेढ़ी टेढ़ी चलती है
तीरंदाज़ सा लगता कभी
कभी काया ढाल जैसी लगती है
टेढ़ा टेढ़ा चल चल ऊँट
कई जंगों में कुर्बान हुआ
परचम लहरा पाया कभी
कभी यूँ ही बेहाल हुआ


घोडा ढाई घर चलता है
और ढाई से मात दे पाता है
फुदक फुदक के घोडा
शत्रु के सर पे चढ़ जाता है
भागे इधर उधर
मचाये उछल कूद
कभी शांति का झंडा पकडे
कभी जेब में होता बारूद


अब वजीर शक्ति शाली
किसी भी ओर बढ़ पाए
किसी को भी रौंद दे
किसी पे भी चढ़ जाए
वजीर-इ-आज़म के अंदाज़
निराले , चाल निराली भई वाह
जिस ओर बढ़ा लो बढ़ जाए
बिना किये किसी की परवाह


यह सारे मोहरे हैं बिसात में
केवल एक कारन वश
विलासी बादशाह को बचा लें
और खा जाएं दुश्मन का सर
पर सोचो ऐसा बादशाह में होगा क्या
जो सब मर मिटने को हैं तैयार
चाहे गिर जाएँ खुद लेकिन
लगायें बादशाह की नय्या पार


मेरी मानो बनो बादशाह
पहनो जीवन में शाही ताज
सिपाही तो गिरने के लिए ही पैदा होते
तुम बदलो अपना आज
शहंशाह के जैसे जीवन जीलो आज
नतमस्तक हो दुनिया
पहनाये तुझे हरदम ताज
इसमें ही सार छुपा है ,
इसीलिए शाही जीवन मैंने पाना है
नहीं तो खेल ख़त्म हो जाए जब
सब मोहरों को एक डब्बे में ही जाना है
सब मोहरों को एक डब्बे में ही जाना है
सब मोहरों को एक डब्बे में ही जाना है!

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