Dreams

Tuesday, May 5, 2015

ना खो ~(c) Copyright



आदर्शवाद की परछाई में
अपना मौलिक स्वाद ना खो

सामाजिक हल्ले में तू
मन से अपने संवाद ना खो

प्रवीणता की दिशा में चलते
दोषों से अपने वाद-विवाद ना खो

हरियाली बोते बोते प्यारे
प्राण देती खाद ना खो

मृत्यु के भयावह चेहरे को तक्ते तक्ते
पल पल में जीवन का आशीर्वाद ना खो

विजय की प्रचंड ध्वनि में
हार का हल्का हल्का नीनाद ना खो

आदर्शवाद की परछाई में
अपना मौलिक स्वाद ना खो

3 comments:

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर कविता!
बनी रहे मौलिकता...!

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मैं रश्मि प्रभा ठान लेती हूँ कि प्राणप्रतिष्ठा होगी तो होगी , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर ।