कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे
कुछ सीधे हाथ का लेखन
कुछ खबबे
कुछ खट्टे अचारी रस
कुछ मीठे मुरब्बे
कुछ कोलाहल के गूंजते मृदंग
कुछ छटपटाहट मे भीगती तरंग
कुछ मासूमियत के खिलते रंग
कुछ प्रेम की नशीली भंग
कुछ हार के आँसू
कुछ जीत के शाही ढंग
कुछ पीरों की वाणी
कुछ अधीरों का रोना
कभी कड़वाहट के रुदन
को शहद में भिगोना
कुछ माटी की खुश्बू
मे कूची डुबोना
कुछ शंखों की गूँज
से सन्नाटे को धोना
बचपन की यादें
कुछ जवानी के वादे
कुछ कर गुज़रने के
पहाड़ों से इरादे
कुछ पहाड़ों की चट्टानों
से रिस्ती धारा
कभी कल्कल अमृत सा गंगा का पानी
कभी अथाह महासागरों सा खारा
कभी गुस्से की चीखें
कभी माफी की भीखें
कभी ये साँसें भी
सुन्न होना सीखें
और ये सब
कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे
या एक दिन मिट जाएँगे सब
या फिर इनसे झुक जाएगा रब
ये कोरे पन्ने पे स्याही के धब्बे
No comments:
Post a Comment