इतनी किताबें, इतने ग्रंथ,
पोथे इतने सारे हैं
कुछ कल्पनाओं की पतंगें हैं
कुछ इच्छाओं के गुब्बारे हैं
कुछ द्रवल मन की धाराएँ
कुछ स्थिर तालाबों के किनारे हैं
इन सब को पढ़ने से
क्या ज्ञान चक्षु खुल जाएँगे?
क्या ग्रंथों के उच्चारण से
पाप सारे धुल जाएँगे?
अचेत को मिलेगी क्या चेतना?
अस्थिर को क्या मिलेगी संवेदना?
क्या पढ़के इन सब को
आ जाएगा अभेद को भेदना?
जो सब पढ़ता है
क्या वो विद्वान है?
जो पढ़ के उगलता है
क्या वो महान है?
जैसे चंद्रमा
सूर्य की रौशनी को
प्रतिबिंबित करता है
उसकी उपस्थिति को
अंकित करता है
सूर्या है तो
चन्द्र का प्रकाश है
पर चंद्रमा की
सुंदरता ही प्रख्यात है
वैसे यह पोथे, ये किताबें
ये ग्रंथ जो इतने सारे हैं
ज्ञान नहीं हैं
केवल ज्ञान की ओर
बस इशारे हैं
बस इशारे हैं
बस इशारे हैं
1 comment:
Bahut khoob.... ☺👌👍
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