हवा ही बदनाम है
इतिहास बदल जाते है
ख़ूँख़ार इरादों से
सियासतें ढह जाती हैं
अधूरे वादों से
तलवार की धार पे लगा लहू
गवाही देता रहे प्यास की
गद्दी के नशे की, तख्त की आस की
इतिहास जानता है
यह इंसानों का ही काम है
पर इसके लिए भी , बस
हवा ही बदनाम है
शीश कट गये,
तख्त पलट गये
कई कई गुनाह
यूँ ही घट गये
पर इल्ज़ाम लगाए
जब जब इतिहास ने
तो उम्मीदवार
किसी पन्ने में छाँट गये
रक्त ही इतिहास के पन्नो
की स्याही, लहू ही उसका दाम है
पर इसके लिए भी, बस
हवा ही बदनाम है
पूर्वाई बन बन हवा
प्रेमिका की लट उलझाए
तूफान बनकर अश्वों
पर वीरों को सवारी करवाए
रेगिस्तान की रेत भी
इसी हवा की गुलाम है
पवन रूप मे सदियों
से जो परिंदों को झुलाए
मौत का संदेश लाते ही
वो बदनाम हो जाए
पूर्वाई से फूँक बनी
तो सब का इसपर इल्ज़ाम है
सब के लिए , बस
हवा ही बदनाम है
7 comments:
http://bulletinofblog.blogspot.in/2015/12/2015.html
बहुत सुंदर लेखन ।
बहुत सुन्दर ...इतिहास बनते देर नहीं लगती
इस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें
एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
बेहद सुन्दर
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
sabhi mitron ko dhanyvaad
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