Dreams

Friday, February 26, 2010

बाकी है………! Copyright ©


सामूहिक निषेद थम जाये तो

खुल कर मैं भी मुस्कुराऊंगा

टूट ते ताश के पत्तों का महल

जो रुके तो, मैं भी गीत सुनाऊंगा

तूफानों में कश्ती डाल ही दी अब

तो उसको पार ज़रूर लगाऊंगा

निष्टा और साहस के बल पे

जीत का बिगुल बजाऊंगा

बहुत कह लिया "काश" अब मैंने

अब तो कुछ कर जाऊंगा।


झेलम की लहरें कहती हैं

उम्मीद अभी बाकी है

चेहरे का “प्रशांत” यह कहता

सैलाब अभी भी बाकी है।

बुझा भरोसा यह कहता

अन्दर तेज़ाब अभी भी बाकी है

गिरते आंसू कहते

है तेरा ईमान अभी भी बाकि है।

थका हौसला मुझसे कहता

थोड़ी जान अभी भी बाकी है

पिघलती दृढ़ता कहती

लोहा अभी भी बाकी है।

गुमनाम रह गयी यह जवानी

कहती मुझसे

इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षर से

तेरा नाम छपना अभी बाकी है।

बिखरे टुकड़े मुझसे कहते

तेरा इनाम अभी भी बाकी है।

लंगड़े विशवास से

अपाहिज सांस से

कांपती आस से

हिले इरादों से

टूटे वादों से

मैं यह कहता

थोडा रुक ले

जंग अभी भी बाकी है,

थोडा थम जा

तेरे विजय का मृदंग बजना

अभी भी बाकी है,

तेरे विजय का मृदंग बजना

अभी भी बाकी है!

Wednesday, February 24, 2010

छोटे उस्ताद Copyright ©


प्रांगण में खेले
दिल बहलाने को हम
उसने जग जीत लिया
लाठी, भाले, ढाल को छोड़
बल्ले से ही भयभीत किया।
थर थर कांपे सारे सैनिक
परचम विजय का लहरा दिया
हथगोले फेंके सबने उसपे
उसने सब सीमा पार किया।

छोटे कद पे न जा बन्दे

श्रम से बनी है जड़े उसकी

कड़ी तपस्या से बनी

है अचूक, तीव्र उसकी दृष्टी।

सौम्य स्वाभाव का है वोह मानुष

अंतर्मन में तूफ़ान छुपा

क्रोध को वश में करके

उसने अपना संसार रचा।

शांति से मैंदान में जाता

पर धुआंधार गोले बरसाता

अपनी सक्षमता के ध्वज पे

अभिमान का रंग नहीं चढ़ाता।


स्तोत्र रचूं मैं तेरे लिए

ग्रन्थ करूँ तुझपे समर्पित

शब्दों से मैं क्या रच पाऊं

तेरे कला और निष्ट की

जो करती पूर्ण देश को

अपनी बल्लेबाज़ी से गौरान्वित।

कितने आये, कितने देखे

तेरे जैसा न कोई हो पाया

खेल जगत में भारत का

जिसने इतना श्रेष्ट स्थान बनाया।


धर्म हमारा खेल ये है तो

देवाधिदेव बस तू ही है

हर श्रृंखला का बस तू ही पंडित

पुष्प,दीप, और आराध्य बस तू ही है।

राज्य कर रहा है तू

हो गए अब दो दशक

सारे अभिलेख तेरी जेब में

अर्ध पूर्ण और दो शतक!