हे माँ, हे देवी
शत शत नमन
निर्मल,पवित्र
तेरे आँचल का चमन
शत शत नमन!
पूत कपूत तो हो जाता
माता , कुमाता कभी न होती
तेरी पीड़ा न समझ सकूँ पर
मेरे ह्रदय की उलझन
एक पल में ही भांप जाती
तेरे स्नेह की आंच में
सारी दुविधा पिघल जाती
देवी, तेरी निष्ट की
शब्दों से व्याख्या न हो पाती
तू जब सर पे हाथ फेरती
तू जब "राजा बेटा" कहती
आनंद की कोई सीमा न रहती
गद गद होता मेरा मन
उम्मीदें छूती गगन
शत शत नमन !
कोई तुझे गंगा कहता
कोई गौ रूप में तुझे पूजता
मंदिर, मस्जिद ,गिरजे में
तेरी मूरत के आगे झुकता
अनेक पर्वों को त्याग के
मात्र- पर्व मैं बनाऊ
तू ही मेरा मंदिर
तुझपे न्योछावर हो जाऊं
तेरे नाम से हर यज्ञ मेरा
तेरे नाम का हर हवन
शत शत नमन !
तेरे दुग्ध के हरेक बूंध
को न्याय दिलाना ही मेरा कर्म
नौ माह के लिए
नौ जन्म तक तेरी सेवा मेरा धर्म
मेरे हर कर्म से पहले
तेरे चरणों का आगमन
शत शत नमन !
शत शत नमन !
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