Dreams

Tuesday, February 2, 2010

कभी तो हवा की भी सुन लो! Copyright ©


कभी तो हवा की भी सुन लो
पंख फैला के गगन में तो उड़ लो
दिल जो कहे वोह गीत गाके
पवन ने झोंकों से सुर नए बुन लो।
आँख मीच के
सपने भींच के
चमकते तारे तो चुन लो
कभी तो हवा की भी सुन लो।

हर पल है बीत रहा

कोई हार कोई जीत रहा

रंग बिरंगे फूल देखके

मासूम हँसी की ताप सेक के

भँवरे के सुर को भी सुन लो

कभी तो हवा की भी सुन लो।


गगन का बादल चीख रहा

गले तू मेरे लग जा

चल उड़ चल संग मेरे

छोड़ दे डर तू मन का।

सोच का सागर

बहुत है गहरा

छोड़ के उस को चल दो

एक बार जीवन के चित्रफलक को

दिल की कूची और मन के रंगों से भर दो

एक बार हवा की भी सुन लो

कभी तो हवा की भी सुन लो।