Dreams

Monday, September 26, 2011

शटल कॉक !! Copyright ©



कभी इस गली कभी उस डगर
कभी कभी तो नया शहर
कभी तारों से बातें
तो कभी भीगते छाते
कभी इसपे लिपट कभी उसपे भौंक
ज़िंदगी बन गयी है शटल कॉक




कभी भूके पेट तो कभी मदिरा की नदियाँ
कभी पकी फसल तो कभी कच्ची कलियाँ
कभी प्रेमिका की ज़ूलफें,
तो कभी माँ के पीठ की पीड़ा
कभी इस मुहल्ले तो कभी वो चौक
ज़िंदगी बन गयी है शटल कॉक


कभी भूक हड़ताल तो कभी सिंवैइयाँ
कभी रुदाली गान तो कभी बने गवैया
कभी शतरंज की बिसात
तो कभी मस्त साटोलिया
कभी वीराने मंज़र तो कभी नवाबी शौक
ज़िंदगी बन गयी है शटल कॉक

कभी ब्रह्म कमाल तो कभी काँटे
कभी कभी तो केवल सन्नाटे
कभी खून की होली कभी माथे की रोली
कभी जन गण मन
तो कभी क्रिकेट की हार का शोक
ज़िंदगी बन गयी है शटल कॉक


कभी इसनी मारा, कभी उसने पीटा
कभी इस ओर, कभी उस ओर घसीटा
मेरे दिल को भी कभी तो सस्ते मे बेचा
कभी दिल से दुआयें कभी दिया धोक
ज़िंदगी बन गयी है शटल कॉक


हर बार ऐसे इधर उधर फिरता रहूँगा
पर गगन में तो उड़ता रहूँगा
जब धरा पे आने का बहाना मिलेगा
किसी ना किसी से भिड़ता रहूँगा
'चिड़िया' तो हूँ मैं , गगन मे भी उड़ता
चलो तुम भी कर लो पूरे अपने शौक
क्यूंकी मैं हूँ शटल कॉक,
मैं हूँ शटल कॉक
मैं हूँ शटल कॉक!

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