“प्रथम पृष्ट” भी खोला मैंने
अंतिम बंद भी सुनाया
“आवाज़” से आपका मन खटकाया
और “मौन “से भी जगाया
“प्रशांत” की गहरायी में भी
पहुंचा
“हिमालय” पे भी ध्वज लहराया
“हरे पत्ते” आपके चरणों में रखे
“शाही पकवान” भी खिलाया
हिंद की संरचना से आपको अवगत कराया
“हिंदी” की परिभाषा का भी अर्थ समझाया
“भोले”, “ब्रह्मा” और “बुद्ध” को
अपने शब्दों से प्रकट करवाया
समाज की कालिक , समाज का गन्दा चेहरा
खुशबु भरे फूल और कमल का रंग गहरा
सब आपके समक्ष रख दिए
मन का कौतुहल और जीवन की बिसात पे
मेरे प्यादे शोकाकुल
सब दर्शाया
आप ने भी वाह वाही की और
मेरे शब्दों को गले लगाया
अपने शब्दों के तीरों से
जो घाव मैंने दिए कभी
तो क्षमा भी मांगी मैंने
और आपके तारीफों की माला
भी मैंने स्वीकार की
अब………क्या?
अब आप ही बता दीजिये
सुनना क्या चाहते हैं
किस बात का विवरण किस की
निंदा सुनना चाहते हैं
क्या सुनना चाहते हैं…
जो प्रत्यक्ष है वो सुनेंगे?
या फिर जो निराकार
दिखला दूँ आपको दर्पण
या फिर केवल कल्पनाओ का शिल्पिकार
प्रेम , प्रेमिका हो या हो बिछड़ने की गाथा
या फिर आसमान छूता कोई इरादा
सचाई या झूठा मुखौटा
हारे की पुकार या जीत का सेहरा
बोलिए क्या सुनना चाहते हैं
अपना …..कि मेरा……
सुनेंगे वो भिखारियों की चीखें
या बच्चो की किलकारी
सीमा पे गिरते सैनिकों की
बिछी लाशों का समावेश
या फिर बैसाखी का गीत या
रंगों से भरी होली की पिचकारी
बोलिए क्या सुनेंगे
आवलोकन या दर्शन शास्त्र
धूमकेतु या ब्रह्मास्त्र
हसी की फुहार
या अबलाओं का बलात्कार
खून के धब्बे
या ख़ुशी का समाचार
आप बस बोलिए
मैं सुनाऊंगा
वाह वाही करने की
बीन भी नहीं बजाऊंगा
बोलिए क्या सुनना चाहते हैं?
मैं तो सुनाता रहा अभी तक
अपनी चेतना का स्पंदन
विजय का सेहरा और
माथे पे उम्मीद का चन्दन
कहा है मैंने हरदम कि आओ
मेरे साथ संग बढाओ चाल
क्यूंकि मेरे हाथ में है
तम को दूर भगाने की मशाल
परन्तु मुझे ज्ञात नहीं है
कि आप क्या चाहते हैं
और कैसे रंग , कैसे भाव
आपको भाते हैं
तो सोच रहा मैं कि मैं
तो बोल ही दूंगा जो मुझे कहना है
चाहे किसी को उस दरिया में संग
मेरे नहीं बहना है
परन्तु आप क्या चाहते हैं
कौनसा चेहरा देखना चाहते हैं
फैसला आपका
क्यूंकि सब वो ही सुनना चाहते हैं
जो वो सुनना चाहते हैं
तो आप ही बता दें
आप क्या चाहते हैं
क्या सुनना चाहते है
क्या चाहते हैं?
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